जो स्वारथ से बाहर जीते, वो समाज में गौण है।।
चाहत सबको सुख पाने की, कोशिश करते बनें सुखी?
मगर पड़ोसी सुख में हो तो, दिखते फिर क्यूँ लोग दुखी?
जीवन एक अबूझ पहेली, इक उलझा षटकोण है।
जो स्वारथ से -----
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की चाहे, जीसस, अल्ला की बातें।
मानव खातिर आज धरा पर, वो बातें ही सौगातें।
उसे समझ चल जीवन - पथ पर, आगे बहुत त्रिकोण है।
जो स्वारथ से -----
सबके जैसा असली नकली, मुझको जीवन का दिखता।
आसानी से लोग समझ लें, शब्द पिरोकर नित लिखता।
लोक-जागरण काम कलम का, रहा सुमन कब मौन है?
जो स्वारथ से -----
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