अपने वश में सबकुछ क्यों दम्भ ये पाले हैं
सब बन्द घरों में अब बाहर में ताले हैं
खांसी भी हुई हल्की, कोरोना के डर से
अपनों ने अपनों को झट घर से निकाले हैं
इस बन्दी के कारण आफत आयी उन पे
जो रोज कमाते हैं, क्या उनको निवाले हैं
ये बात है राहत की कुछ लोग बढ़े आगे
जो बेबस लोगों को मिलजुल के सम्भाले हैं
नहीं सुमन बचा कोई मानवता संकट में
सहयोग वही करते जो दिल से निराले हैं
सब बन्द घरों में अब बाहर में ताले हैं
खांसी भी हुई हल्की, कोरोना के डर से
अपनों ने अपनों को झट घर से निकाले हैं
इस बन्दी के कारण आफत आयी उन पे
जो रोज कमाते हैं, क्या उनको निवाले हैं
ये बात है राहत की कुछ लोग बढ़े आगे
जो बेबस लोगों को मिलजुल के सम्भाले हैं
नहीं सुमन बचा कोई मानवता संकट में
सहयोग वही करते जो दिल से निराले हैं
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