Tuesday, July 1, 2025

जब कालचक्र घूमे तो

ये सबको  है  एहसास, डरे वो भीतर से।
पर मन से जो बदमाश, डरे वो भीतर से।।

जीवन जीने का सपना, सुख-दुख है सबका अपना। 
सुख  की  चर्चा  से दूरी, बस केवल दुख को जपना।
महफिल में बनते खास, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

जिसको  भी  गले  लगाते, उसके घर आग जलाते। 
जिसने  भी  चाहा  इनको, अब  रो-रोकर पछताते। 
दिखते मन के ऐय्याश, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

वो  जाते  जहाँ  वहीं  के, पर  दर्शन  करे  मही के।
जब  कालचक्र  घूमे  तो, फिर  होते  नहीं कहीं के।
ये सुमन को है विश्वास, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

नारंगी इमर्जेन्सी

साधो! सब राजा इक संगी। 
कभी इमर्जेन्सी जो काली, अभी हुई नारंगी।।
साधो! सब राजा -----

लोक-लुभावन शब्द गढ़े नित, राजा एक दशक से। 
सबके सब  झूठे  साबित  पर, राजा चले ठसक से।
ऐसा   अंकुश   लोकतंत्र  पे,  हुई   सियासत  नंगी।।
साधो! सब राजा -----

सबको  आगे  बढ़ने  का  हक,  संविधान  देता  है। 
जाति-भेद बिनु शिक्षित सबको, सदा मान देता है।
पता  नहीं  वो  दिन  कब  आए, वेद  सुनाए भंगी।।
साधो! सब राजा -----

धर्म  एक  दुनिया  में जिसको, मानवता कहते हैं।
जो  इसके  विपरीत  चलें  तो, दानवता  कहते हैं।
देख  सुमन  फोटो  में राजा, बन के निकला जंगी।।
साधो! सब राजा -----

Monday, June 23, 2025

दुनिया कुछ सनकी के कारण

बिगड़  रहा है विश्व-समाज, 
कुछ शासक हैं जुमलेबाज, 
कौन  देश  है  किसका  साथी, खबरों  में यह शोर है।
दुनिया  कुछ सनकी के कारण, विश्वयुद्ध की ओर है।।

सभी देश में शासक आते, धनबल, नफरत के दम पर।
पर  मानवता  बढ़ती आगे, सदा  मुहब्बत  के  दम पर।
जहाँ   युद्ध  जारी   है  देखो,  विपदा  भी  घनघोर  है।।
दुनिया कुछ सनकी के कारण -----

घटनाओं  पर गौर करें तो, कुछ शासक अनपढ़ लगते। 
राजनीति के दृष्टिकोण से, कुछ बिल्कुल अनगढ़ लगते।
सभी  देश   में   तानाशाही,  लाने   पर  भी   जोर  है।।
दुनिया कुछ सनकी के कारण -----

जहाँ - जहाँ  सामंती  शासक, वहाँ - वहाँ आतंक बढ़े।
तब  विरोध  में सुमन इसी के, बलिदानी निःशंक बढ़े।
लोक - चेतना  आमजनों  में, जगे  तो  नूतन - भोर है।
दुनिया कुछ सनकी के कारण -----

योग जरूरी मीत

योग  जरूरी   रोज  है,  इक   दिन  करे  प्रचार।
इक   योगी   शासन   करे,  एक   करे  व्यापार।।

योगी - जन  मिलते  कहाँ,  कपड़े  पर  विश्वास।
कुछ  योगी  कुछ  संत को, जगह जेल में खास।।

चक्की, सिलबट, ढेकियाँ, करता  कौन  प्रयोग?
लेकिन  सब  करते  अभी, उसी  नाम  से  योग।।

कुछ  पशुओं  के  आचरण, हैं  आसन  के अंग।
पर  मानव  नित  कर  रहे, अब पशुओ को तंग।।

स्वस्थ - सुखी  हो  जिन्दगी, योग  जरूरी  मीत।
पर  दैनिक  जो  आचरण, योग - भाव विपरीत।।

कितने   रोपे  पेड़  को,  पर   काटे  नित  लोग।
शुद्ध हवा, जल के बिना, क्या कर सकता योग??

सदियों  से   हर  योग  का,  भारत   में  है  मूल।
सुमन  कहाँ  परिवेश  है, योग - क्रिया अनुकूल??

झूठ, झूठ पर लेप रहा है

सब अचरज  से देख रहा है 
फेंकू   केवल  फेंक  रहा  है 

मोहक झूठ गढ़ा जीवनभर 
कभी  नहीं  वो  नेक रहा है 

समाचार   गोदी - चैनल  के
झूठों   से   लबरेज   रहा  है 

किया  मित्र  ने  यूँ  नंगा कि
बार - बार  वो  झेंप  रहा  है 

सच से नाता कभी न इनका
झूठ, झूठ  पर  लेप  रहा  है 

बाँटे  आग  सदा नफरत की 
रोटी   अपनी   सेंक  रहा  है 

पूछे  प्रश्न  सुमन इक तुझसे
क्यूँ  सच  से  परहेज रहा है 

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