व्यर्थ लगे सब अर्जित साधन ऐसा आजतलक ना देखा
दहशत में है सबका जीवन ऐसा आजतलक ना देखा
धरती से मंगल तक पहुंचे पर क्या मंगल हो पाया?
खोया खोया है सबका मन ऐसा आजतलक ना देखा
लकवाग्रस्त किया दुनिया को छोटे इक विषाणु ने
खुद से कैद किया खुद का तन ऐसा आजतलक ना देखा
कौन सहारा किसको देगा केवल बात सहारा है
याद किया अपना भी बचपन ऐसा आजतलक ना देखा
आपस में सहयोग परस्पर करो सुमन है जीना तो
सब घर में पर सूना आंगन ऐसा आजतलक ना देखा
दहशत में है सबका जीवन ऐसा आजतलक ना देखा
धरती से मंगल तक पहुंचे पर क्या मंगल हो पाया?
खोया खोया है सबका मन ऐसा आजतलक ना देखा
लकवाग्रस्त किया दुनिया को छोटे इक विषाणु ने
खुद से कैद किया खुद का तन ऐसा आजतलक ना देखा
कौन सहारा किसको देगा केवल बात सहारा है
याद किया अपना भी बचपन ऐसा आजतलक ना देखा
आपस में सहयोग परस्पर करो सुमन है जीना तो
सब घर में पर सूना आंगन ऐसा आजतलक ना देखा
2 comments:
सुन्दर रचना
क्या मंगल हो पाया...बहुत खूब !!!
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