संकट में सहयोग हो, तंत्र करो ना सख्त।
छाले जिनके पांव में, वही बिठाये तख्त।।
लापरवाही तंत्र की, बदल दिया परिवेश।
पीड़ा होती देखकर, आज सड़क पर देश।।
नाम प्रवासी दो भले, निर्माता मजदूर।
जिसे बुलाने के लिए, तुम होगे मजबूर।।
भले समस्या है बड़ी, हल होगा इक रोज।
प्रेमपूर्ण सहयोग से, नयी राह तू खोज।।
घोटाले भी हो रहे, खबरों में ये बात।
नरपिशाच सा हो रहा, मानव का जज्बात।।
वक्त बुरा है देश में, हो सहयोग नवीन।
या खिसकेगी सोच ले, पांवों तले जमीन।।
आमलोग में दर्द यूं, लगता इक अभिशाप।
सिहरन हो दिल में सुमन, तब जिन्दा हैं आप।।
छाले जिनके पांव में, वही बिठाये तख्त।।
लापरवाही तंत्र की, बदल दिया परिवेश।
पीड़ा होती देखकर, आज सड़क पर देश।।
नाम प्रवासी दो भले, निर्माता मजदूर।
जिसे बुलाने के लिए, तुम होगे मजबूर।।
भले समस्या है बड़ी, हल होगा इक रोज।
प्रेमपूर्ण सहयोग से, नयी राह तू खोज।।
घोटाले भी हो रहे, खबरों में ये बात।
नरपिशाच सा हो रहा, मानव का जज्बात।।
वक्त बुरा है देश में, हो सहयोग नवीन।
या खिसकेगी सोच ले, पांवों तले जमीन।।
आमलोग में दर्द यूं, लगता इक अभिशाप।
सिहरन हो दिल में सुमन, तब जिन्दा हैं आप।।
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