देशभक्त अब नाथूराम,
संविधान का काम तमाम,
ताकत से सच्चाई हर दिन कुचली जाती है।
याद तुम्हारी बापू सचमुच दिल से आती है।।
जेल गए तुम लाठी खाए तब जाकर आजाद हुए।
सात दशक में देखो आकर हम कितने बर्बाद हुए।
बहू बेटियों की इज्ज़त जब लूटी जाती है।
याद तुम्हारी बापू -----
नाम तुम्हारा सब जपते हैं गद्दी पाने को।
लेकिन काम सभी उनके बस हमें सताने को।
घोर गरीबी बहुजन के घर नित मुस्काती है।
याद तुम्हारी बापू -----
आमजनों की नजरों में ये लोकतंत्र घायल है।
मगर सियासत वालों के घर बजती नित पायल है।
बेबस जनता सुमन मौत को पास बुलाती है।
याद तुम्हारी बापू -----
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