मेरा दल अच्छा बहुत, बाकी सब बेकार।
अभी मीडिया में शुरू, वैसा ही तकरार।।
शासन करे निराश तो, न्यायालय से आस।
लेकिन शक में अब सभी, किस पर हो विश्वास??
सारे दल घोषित करे, जन-सेवा के भाव।
पर कोशिश है पद मिले, अपना बढ़े प्रभाव।।
भूख, बेबसी में फँसी, है बहुजन की जान।
शासक इधर खरीदते, मँहगे और विमान।।
महमारी के नाम पर, हुआ कुठाराघात।
ये पब्लिक सब जानती, क्या अन्दर की बात??
नारे, जुमलों में फँसे, बार बार हमलोग।
हक पाने को सीख ले, लड़ना भी इक योग।।
लोक-चेतना में अगर, बसे सुमन की बात।
तब लेखन होगा सफल, और एक सौगात।।
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