ऐ चौरासी करोड़ देशवासियों!
तुझे पता है न अपनी हैसियत!
तेरी औकात क्या है?
एक महीने में, हां! तीस दिनों में,
एक किलो चना, एक किलो दाल
और पांच किलो अनाज की है,
साथियों! ये हालत आज की है।
ये मैंने नहीं तय किया है प्यारे!
यो तो वो सरकार कहती है,
जिसे तुमने प्यार से चुना था,
जिसको चुनने के लिए
सिर फुटौव्वल और
अपना सिर धुना था,
क्या नया रोजगार भी,
कहीं गढ़ा जाता है?
पर अचरज है कि कुबेरों का,
व्यापार रोज बढ़ा जाता है।
सोचो! खुद से खुद में सोचो!
क्या ये सरकार?
पूरे देश या समाज की है?
दोस्तों! ये हालत आज की है।
तुम सोचने से बच सकते क्या?
तुझे हर हाल में सोचना ही होगा,
जब भूख लगेगी तब,
जब रोजगार नहीं मिलेंगे तब,
जब बच्चे पढ़ नहीं पाएंगे तब।
या फिर अगर जिन्दा लाश हो,
तो मत सोचो!
कोई मजबूर भी तो नहीं कर सकता!
आखिर! अंतिम सच यही है कि
एक दिन सबको मरना है।
कोई घुट घुट के मरता है,
कोई झुक झुक के मरता है।
लेकिन दुनियावाले कहेंगे कि
किसी भी लोकतंत्र के लिए
ये बात बहुत लाज की है।
मितरों! ये हालत आज की है।
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