जर्रा जर्रा रो रहा, घायल है ज्जबात।
लोग भला कैसे सुनें, तेरे मन की बात।।
आस पास तेरे अभी, जो करते गुणगान।
यह उनकी श्रद्धा नहीं, स्वारथ है श्रीमान।।
खुशफहमी तू छोड़ दे, देख हमेशा भीड़।
ये शुभचिंतक हैं नहीं, यही उजाड़े नीड़।।
आमजनों को आस थी, बदलेंगे हालात।
मगर समर्थक आपके, मचा रहे उत्पात।।
निकल प्रशंसा-जाल से, काम करो कुछ नेक।
मुकुट दिया जिसने तुझे, दे उतार वो फेंक।।
दरबारी तुझको सदा, रखते सच से दूर।
हाल बिगड़ता जा रहा, आमलोग मजबूर।।
समय सदा लिखता सुमन, हम सबका इतिहास।
सुधर गए तो ठीक या, कल होगा उपहास।।
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