हाथों से काम छिन गए अमन चला गया
कैसे ये किसके हाथ में वतन चला गया
मजहब में बाँटकर अभी वो बाँटते किसान
टुकड़े किए हैं इतने कि आँगन चला गया
शासक को देश माना जिस कौम ने कभी
वो बागवां भी न रहा, चमन चला गया
कैसी है बादशाहत, कुछ खोट दिख रहा
बस काम खोजने में यौवन चला गया
कैसी तुम्हारी जिद है किस बात का गुमां
समझाने में सुमन का जीवन चला गया
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