Sunday, December 13, 2020

छीनी सबकी मुस्कान

सेवक  है एक प्रधान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी मुस्कान, हमारे भारत में।

भरते जो सबकी थाली, अब थाली उनकी खाली।
पूर्वज  के  दोष  गिनाकर, बजवाते खुद पे ताली।
बेबस मजदूर-किसान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी -----

झूठे  वादों  से  नाता, सपने  भी खूब दिखाता।
जब प्रश्न पूछती जनता, कोई मुद्दा और उठाता। 
हैं लोग-बाग हलकान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी ------

अब चेत समय पर प्यारे, बस छोड़ो नकली नारे।
तू  बातें  सुनो सुमन की, गर्दिश में आज सितारे।
जन गण का क्यों अपमान, हमारे भारत में?
छीनी सबकी -----

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