जन-मानस में आग लगी है, चेत जरा
अभी मनचली हवा बही है, चेत जरा
चलती मनमर्जी कितने दिन राजा की
आन्दोलन की कली खिली है, चेत जरा
सेवक से अधिनायक तुम क्यों बन बैठे
जनता में खलबली मची है, चेत जरा
मन की बातें जबरन सबको सुना रहे
क्या जनमत की बात सुनी है, चेत जरा
तुम बैलून बने फिरते हो इधर उधर
हवा किसी ने और भरी है, चेत जरा
बेहतर से बेहतर कैसे परिवेश बने
फर्ज निभाने कलम उठी है, चेत जरा
नहीं दुश्मनी अपनी, तुझसे है सांई
सुमन पते की बात कही है, चेत जरा
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