माचिस तेरे हाथ में, माचिस मेरे हाथ।
आग चमन में तू लगा, मैं दीपक के साथ।
तुम लिखते मैं भी लिखूँ, हम लेखन के मीत।
मैं विरोध में लिख रहा, तुम दरबारी गीत।।
तुम सेवक हो देश के, मैं भी सेवक एक।
तुम समाज को बाँटते, मुझमें बचा विवेक।।
तेरे, मेरे दिख रहे, चिन्तन में जज्बात।
तुम जीते इतिहास में, मैं भविष्य की बात।।
मैं गरीब, तुम हो बने, बलशाली, ध नवान।
तुम तोड़ो, मैं जोड़ता, लोगों का सम्मान।।
मेरी शिक्षा नीति की, तेरी शिक्षा फूट।
मुझे लूटते तुम अभी, तुझे मिली है छूट।।
मेरा, तेरा एक दिन, सूरज होगा अस्त।
मैं घायल-सा इक सुमन, बिनु विवेक तू मस्त।।
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