मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ
जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को
वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ
अक्सर लोग चुने हैं अपने जो शासक
वो जन से करते होशियारी एक तरफ
जनता खातिर सदा खजाना है खाली
धनवानों को धन सरकारी एक तरफ
गुर्गे शासक - दल के गली - मुहल्ले में
खुलेआम करते रंगदारी एक तरफ
गर समाज को बेहतर और बनाना तो
करनी होगी सबसे यारी एक तरफ
आमजनों की पीड़ा गाए रोज सुमन
रोको शासक की ऐय्यारी एक तरफ
No comments:
Post a Comment