माता! बनने लगी कुमाता।
पता नहीं क्या क्या दिखलाये, जग में और विधाता??
माता! बनने -----
एक सास बेटी के घर में, घुसकर प्रेम बिगाड़े।
दूजा सास बहू को घर में, खोजे दोष लताड़े।
अक्सर घर में द्वेष-जलन से, धुआँ भी बाहर आता।।
माता! बनने -----
हत्यारिन माँ सन्तानों की, खबरें जब तब आतीं।
अपने प्रेमी सँग बेटी से, दुराचार करवातीं।
अब दिखते हैं रात में सूरज, दिन में चाँद दिखाता।।
माता! बनने -----
परिजन में हो प्रेम सहज तो, घर-परिवार बसेगा।
फिर बेहतर सामाजिक जीवन, को आधार मिलेगा।।
प्रेम आपसी बहुत कीमती, सबको सुमन सिखाता।।
माता! बनने -----
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