Saturday, March 28, 2009

एक अनोखी बात


पाँच बरस के बाद ही, क्यों होती है भेंट?
मेरे घर की चाँदनी, जिसने लिया समेट।।

ऐसे वैसे लोग को, मत करना मतदान।
जो मतवाला बन करे, लोगों का अपमान।।

प्रत्याशी गर ना मिले, मत होना तुम वार्म।
माँग तुरत भर दे वहीं, सतरह नम्बर फार्म।।

सत्ता के सिद्धान्त की, एक अनोखी बात।
अपना कहते हैं जिसे, उससे ही प्रतिघात।।

जनता के उत्थान की, फिक्र जिन्हें दिन रात।
मालदार बन बाँटते, भाषण की सौगात।।

घोटाले के जाँच हित, बनते हैं आयोग।
आए सच कब सामने, वैसा कहाँ सुयोग।।

रोऊँ किसके पास मैं, जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में, शासन है मजबूर।।

व्यथित सुमन हो देखता, है गुलशन बेहाल।
लोग सही चुन आ सकें, छूटेगा जंजाल।।

14 comments:

रंजू भाटिया said...

रोऊँ किसके पास मैं जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में शासन है मजबूर।।

बहुत सही बात ..बढ़िया चुनावी रंग दिखाया आपने इन दोहों में ..

रंजना said...

बहुत बहुत सही..... सुन्दर समसामयिक रचना...


पर समस्या यह है कि चुनें तो किसे.....सभी तो एक ही थाले के चट्टे बट्टे हैं.....
भूले भटके कोई एक आध कुछ ठीक ठाक है भी तो या तो सत्ता में आने पर बाकियों के रंग में रंग जाते हैं या फिर अलग थलग पड़ जाते हैं....

दिगम्बर नासवा said...

सत्ता के सिद्धान्त की एक अनोखी बात।
कहते हैं अपना जिसे उसका ही प्रतिघात।।

सुन्दर दोहे श्यामल जी
राजनीति पर सटीक प्रहार......वैसे तो नेता और राजनीति है ही इस काबिल

mehek said...

सुमन व्यथित हो देखता गुलशन है बेहाल।
सही लोग को चुन सकें छूटेगा जंजाल।।
waah sahi kaha,saare dohe lajawab

श्यामल सुमन said...

रंजू जी, रंजना जी, दिगम्बर भाई, महक जी,

हौसला आफजाई के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार। आज से एक सप्ताह के लिए अपने गाँव जा रहा हूँ। फिर मुलाकात होगी। यूँ ही स्नेह बनाये रखें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

संगीता पुरी said...

अच्‍छे दोहे ...

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवा श्यामल जी, आप तो सामयिक रंग में आ गये... अच्छे दोहे हैं.. आपको बधाई.

Harshvardhan said...

chunav ki ulti ginti shuroo ho gayi hai aapne apni kavita me bhi iske jhalak dikhala di hai...
behad khoob... rachna achchi lagi... aapko shukria

Yogesh Verma Swapn said...

सुमन व्यथित हो देखता गुलशन है बेहाल।
सही लोग को चुन सकें छूटेगा जंजाल।।
wah sunder rachna men apne naam ka kya khoob prayog kiya hai. suman ji badhai.

Prem Farukhabadi said...

रोऊँ किसके पास मैं जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में शासन है मजबूर।।
bahut sach kaha aapne.badhaai.

virendra sharma said...

khoob liktey ho mere bhai vyagya vinod main ,rajnitkon ko aaiena dikhane aap ka koi saani nahin shyamal bhai,tarakki karo aur aage aur aagey badho isi pratyasha ke saath-veerubhai1947.blogspot.com

अवनीश एस तिवारी said...

kyaa dohaa ke niyam kaa paalan huyaa hai ?
13-12 13-11 ka pattern hota hai.

Avaneesh

विजय तिवारी " किसलय " said...

सुन्दर और सामयिक दोहे हैं.
- विजय

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!!

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