होली हम भी मनाते हैं,
और हमारे रहनुमा भी मनाते हैं।
लेकिन दोनों के होली में फर्क है,
जिसके लिए प्रस्तुत यह तर्क है।।
सब जानते हैं कि
होली रंगों का त्योहार है।
एक दूसरे के चेहरे पर,
रंग लगाने का व्यवहार है।।
रंगों में असली चेहरा,
कुछ देर के लिए छुप जाता है।
पर अफसोस, ऐसा दिन हमारे लिए,
साल में बस एकबार ही आता है।।
लेकिन हमारे रहनुमा,
पूरे साल होली मनाते हैं।
बिना रंग लगाये, सिर्फ रंग बदलकर
अपना असली चेहरा छुपाते हैं।।
देखकर इन रहनुमाओं की,
रंग बदलने की रफ्तार।
गिरगिटों में छायी बेकारी,
और वे करने लगे आत्महत्या लगातार।।
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10 comments:
बहुत बढ़िया रचना . आभार
बहुत बढ़िया. बधाई.
बहुत अच्छी रचना ... बधाई।
देखकर इन रहनुमाओं की,
रंग बदलने की रफ्तार।
गिरगिटों में छायी बेकारी,
और वे करने लगे आत्महत्या लगातार।।
हॊली के बहाने आपने समाज का सत्य उजागर कर दिया
बहुत बिढया
लेकिन हमारे रहनुमा,
पूरे साल होली मनाते हैं।
बिना रंग लगाये, सिर्फ रंग बदलकर
अपना असली चेहरा छुपाते हैं
श्यामल जी
tej dhaar है व्यंग की, पर बहुत sundar लिखा है
वाह...बहुत कडा लिखा है जी...मन तो कर रहा है...लगे हाथ मैं भी कुछ जोड़ दूँ....मगर छोडो...मैं जोडूंगा तो बोलोगे कि जोड़ता है.....!!
सुन्दर ..अच्छे तर्क दिए आपने.
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बढ़िया व्यंग लिखा है आपने अपनी इस रचना में शुक्रिया
बिलकुल सही कहा आपने...
होली(भष्टाचार,दुराचार) के रंगों से पुते चेहरे को प्रभावशाली ढंग से उघाडा आपने......
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