इंसानियत ही मज़हब सबको बताते हैं
देते हैं दग़ा आकर इनायत जताते हैं
उसने जो पूछा हमसे क्या हाल चाल है
लाखों हैं बोझ ग़म के पर मुसकुराते हैं
मजबूरियों से मेरी उनकी निकल पड़ी
लेकर के कुछ न कुछ फिर रस्ता दिखाते हैं
खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं
नज़रें चुराए जाते जो दुश्वारियों के दिन
बदले हुए हालात में रिश्ते बनाते हैं
दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं
फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ-
17 comments:
बढ़िया लिख रहे हैं, शुभकामनाएँ
---
ghazal ke tevar ne dushyant ki yaad taazaa kar di
BADHAI............
दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
ये तो जिंदगी का चलन है..............सत्य है कठोर सा........
फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।
क्या बात है...........सुमन जी.........सुमन आप भी सुमन फूल भी.........आप दोनों ही खुशियाँ और खुशबू दोनों फैला रहे हैं,,,,,,,अपने अपने अनदज़ से
नज़रें चुराए जाते जो दुश्वारियों के दिन।
बदले हुए हालात में रिश्ते बनाते हैं।।
EXACTLY TRUE
खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।
वाह सुमन जी वाह...बहुत ही अच्छी रचना....बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई...
नीरज
bahut he khoob
वाह !! बहुत खूब !!
दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।
bahut khoob lajawaab rachna ke liye dheron badhai.
bahut sunder gazal hai
दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
........
क्या बात कही है...
खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।
--गजब भाई!! बहुत शानदार!
खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।
दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
निहायत शशक्त ग़ज़ल के निम्न शेर कुछ ज्यादा ही पसंद आये.
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।
speechless..ye sher bahot dilkash raha
इंसानियत, इंसानी मजबूरी, अवसरवादिता और जीवन की कड़वी सच्चाई का मर्मस्पर्शी चित्रण. कविता एक, भाव अनेक. बधाइयां!!!
सदैव आपके आशीर्वाद की कामना में.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
बहुत शानदार.बहुत बहुत बधाई.
हो आप तो सुमन भले कान्टों के बीच मे
खुश्बू ही हो खुश्बू धरम खुश्बू हो बढाते
फ़ितरत का क्या करोगे दोस्त खून मे शामिल
तुम खूं बहा रहे हो वो हैं खून चढाते ................
इन्सानियत का मज़हब वो बताते हैन जीते हैन हम और आप.
रचना पोस्ट करने के बाद एक सप्ताह के लिए बाहर चला गया था। आया तो देखा इतने सारे कमेन्ट्स। बहुत प्यार दिया आप लोगों ने। सबके प्रति हार्दिक आभार।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Post a Comment