Tuesday, May 12, 2009

इंसानियत

इंसानियत ही मज़हब सबको बताते हैं
देते हैं दग़ा आकर इनायत जताते हैं

उसने जो पूछा हमसे क्या हाल चाल है
लाखों हैं बोझ ग़म के पर मुसकुराते हैं

मजबूरियों से मेरी उनकी निकल पड़ी
लेकर के कुछ न कुछ फिर रस्ता दिखाते हैं

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं

नज़रें चुराए जाते जो दुश्वारियों के दिन
बदले हुए हालात में रिश्ते बनाते हैं

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं

फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं

17 comments:

Vinay said...

बढ़िया लिख रहे हैं, शुभकामनाएँ

---

Unknown said...

ghazal ke tevar ne dushyant ki yaad taazaa kar di
BADHAI............

दिगम्बर नासवा said...

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
ये तो जिंदगी का चलन है..............सत्य है कठोर सा........

फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।
क्या बात है...........सुमन जी.........सुमन आप भी सुमन फूल भी.........आप दोनों ही खुशियाँ और खुशबू दोनों फैला रहे हैं,,,,,,,अपने अपने अनदज़ से

प्रिया said...

नज़रें चुराए जाते जो दुश्वारियों के दिन।
बदले हुए हालात में रिश्ते बनाते हैं।।

EXACTLY TRUE

नीरज गोस्वामी said...

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।
वाह सुमन जी वाह...बहुत ही अच्छी रचना....बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई...
नीरज

Anonymous said...

bahut he khoob

संगीता पुरी said...

वाह !! बहुत खूब !!

Yogesh Verma Swapn said...

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।

फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।

bahut khoob lajawaab rachna ke liye dheron badhai.

प्रज्ञा पांडेय said...

bahut sunder gazal hai

रश्मि प्रभा... said...

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।
........
क्या बात कही है...

Udan Tashtari said...

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।

--गजब भाई!! बहुत शानदार!

Mumukshh Ki Rachanain said...

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।

दुनिया से बेख़बर थे उसने जगा दिया।
चलना जिसे सिखाया वो चलना सिखाते हैं।।

निहायत शशक्त ग़ज़ल के निम्न शेर कुछ ज्यादा ही पसंद आये.

आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त

निर्झर'नीर said...

फितरत सुमन की देखो काँटों के बीच में।
खुशियाँ भी बाँटते हैं खुशबू बढ़ाते हैं।।

speechless..ye sher bahot dilkash raha

Anonymous said...

इंसानियत, इंसानी मजबूरी, अवसरवादिता और जीवन की कड़वी सच्चाई का मर्मस्पर्शी चित्रण. कविता एक, भाव अनेक. बधाइयां!!!

सदैव आपके आशीर्वाद की कामना में.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत शानदार.बहुत बहुत बधाई.

RAJ SINH said...

हो आप तो सुमन भले कान्टों के बीच मे
खुश्बू ही हो खुश्बू धरम खुश्बू हो बढाते
फ़ितरत का क्या करोगे दोस्त खून मे शामिल
तुम खूं बहा रहे हो वो हैं खून चढाते ................

इन्सानियत का मज़हब वो बताते हैन जीते हैन हम और आप.

श्यामल सुमन said...

रचना पोस्ट करने के बाद एक सप्ताह के लिए बाहर चला गया था। आया तो देखा इतने सारे कमेन्ट्स। बहुत प्यार दिया आप लोगों ने। सबके प्रति हार्दिक आभार।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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