बाँटी है जिसने तीरगी उसकी ही बन्दगी
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो
गर सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया
जो बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी
है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी
क्या चाल सियासत की पढ़ाती है जिन्दगी
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे
महिला - दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी
किरदार चौथे - खम्भे का हाथी के दाँत सा
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी
देखो सुमन की खुदकुशी टूटा जो डाल से
रंगीनियाँ कागज की सजाती है जिन्दगी
36 comments:
zindgi k anek rang aur dhang ko ek sootra me baandh kar aapne badi sundar rachna ki.....
badhaai !
श्यामल जी,
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।।
बहुत खूब शेर कहा है, जिन्दगी की नंगी सच्चाईयों को सामने लाता हुआ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।।
bahut sundar baat kahi aapne.
www.baithak.hindyugm.com
निखिल आनंद गिरि
जिंदगी की तरह तमाम भावनाओं से लबरेज यह गजल है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।
gazab hai...
har sher gazab ka hai.......zindagi ki sachchaiyon se avgat karata hua.
नमस्कार श्यामल जी मैं क्या कमेन्ट करू मैं अपने आप को उस स्थिति में नहीं पता जो आप की रचनाओ पर कमेन्ट करूँ सायद इसी लिए अब तक कोई कमेन्ट नहीं किया इस ब्लॉग जगत में कुछ लोग यैसे है जिनकी रचनाये हमेशा नया जोश भरती है इन लो गो में आप और निर्मल कपिला जी को मैं मन ही मन अपना गुरु मान बैठा हूँ अत एक बार फिर नत मस्तक हूँ सच्चाई को प्रद्सित करती एक अमूल्य रचना
वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी।
क्या चाल सियासत की पढ़ाती है जिन्दगी।।
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।
आप का ही तकिया कलाम
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।
श्यामल जी जब ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हों ऐसे में किसी एक शेर की तारीफ करना हिमाकत होगी...बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...आज के हालात का बेबाक वर्णन किया है...बहुत बहुत बहुत बधाई....
नीरज
वाह बडी सुंदर रचना.
रामराम.
सुन्दर।
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।
लाजवाब !!!!! क्या बात कही है आपने....
बेबाकी से हकीकत बयां करती ...बहुत बहुत कमाल की ग़ज़ल !! साधुवाद स्वीकारें..
jindgi ke anek rang hai un rango ko aapane jis sahajata se bayan kar diya hai .......kya kahun ............aapki lekhani ko salam
Wah....
महकेगा मन-सुमन, चहक उठेगी जिन्दगी।
लेकिन दिलों से अपने, हटाओ तो गन्दगी।।
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।
बहुत सुंदर जी,
्धन्यवाद
सभी को है आभार जो दिया स्नेह की छाँव।
छोड़ के लेखन सात दिन रहूँगा अपने गाँव।।
हसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।
gazab ka likha hai.....
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।
gazab ka likha hai.....
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।।
--बहुत खूब!! बेहतरीन रचना.
है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी।
क्या चाल सियासत की पढ़ाती है जिन्दगी।।
wah suman ji, sabhi sher lajawaab. badhaai.
वाह! वाह - बहुत सुन्दर लिखा जी!
क्यों भैंस है उनकी।
-
shandar rachana
वाह! ग़ज़ल के भाव तो अच्छे हैं। लेकिन मतले का शेर कानूनी है क्या?।
एक शेर मैं भी जोड़ता हूँ। मुलाहिजा हो...!
इन्सान बँट गया तमाम कायनात में।
टुकड़ों में इसे रोज दिखाती है जिन्दगी॥
तार-तार होती जिन्दगी के सभी राज परोस दिए आपने अपनी इस प्यारी से - नाजुक सी, लजाती सी, शरमाई सी जीवंत ग़ज़ल में.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।
वाह...... कमाल का कहा है सुमन जी.......पूरी ग़ज़ल नए एहसास से भरी है
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।। ...bahut sundar bhaav hain.
श्यामलजी माफी चाहती हूँ पता नहीं कैसे ये खूबसूरत रचना मुझ से देखे बिन रह गयी फिर भी भाग्यशाली हूँ कि देर आये दुरुस्त आये
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।।
अद्भुत बेहतरीन बधाई
श्यामलजी माफी चाहती हूँ पता नहीं कैसे ये खूबसूरत रचना मुझ से देखे बिन रह गयी फिर भी भाग्यशाली हूँ कि देर आये दुरुस्त आये
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।।
अद्भुत बेहतरीन बधाई
कितना अच्छा लग रहा होगा आपको अपने गाँव जाकर ना, एक अलग ही एहसास.....देरी से आने के लिए माफ़ी चाहूंगा.....हमेशा की तरह भावपूर्ण मगर सशक्त लेखन जारी है........
साभार
हमसफ़र यादों का.......
क्या बात है...
बेहतरीन रचना...
Sach to ye hai,ki, aapkee rachnaon pe tippanee karun...ye meree qabiliyat nahee...!
बेहतरीन रचना....
'बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी।
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी।।'
- यह अकेला शेर पूरी गजल कह रहा है.
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।
बहुत खूब!! बेहतरीन रचना
बधाई....
बहुत ही बढ़िया
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