Tuesday, July 14, 2009

चाहत

लगे चुराने सपन हमारे, सुनहरे सपने सजाये रखना
ख़तम तीरगी कभी तो होगी, चिराग दिल में जलाये रखना

खोज रहा हूँ बाजारों में, वो आशियाँ जो कभी था मेरा
अपना घर फिर से एक होगा, इसी आस को बचाये रखना

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना

नहीं शेष अब सहनशीलता, ह्रदय में शोले सुलग रहे हैं
हाथ मिले आपस में तबतक, उन शोलों को दबाये रखना

आग लगी है कई तरह की, हमें बचाना है उपवन को
सभी सुमन के मान बराबर, चाहत ऐसी बचाये रखना

27 comments:

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आपकी रचना बहुत ही अच्छी लगती है।
सुन्दर।

आभार/शुभकामनाओ सहित
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

mehek said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥

नहीं शेष अब सहनशीलता, ह्रदय में शोले सुलग रहे हैं।
हाथ मिले आपस में तबतक, उन शोलों को दबाये रखना॥

bahut hi khari baat kahi,sunder rachana.

नीरज गोस्वामी said...

आग लगी है कई तरह की, हमें बचाना है उपवन को।
सभी सुमन के मान बराबर, चाहत ऐसी बचाये रखना॥

सुमन जी बहुत खूबसूरत रचना...बधाई..
नीरज

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi shaandaar.....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर गजल कही है आपने। बधाई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

शारदा अरोरा said...

ख़तम तीरगी कभी तो होगी, चराग दिल में जलाये रखना॥
bahut sundar

विवेक सिंह said...

वाह वाह !

बेहतरीन रचना !

Anonymous said...

जरूर......बेशक.....क्यों नहीं......

सपने भी सजाये रखेंगे,
चराग भी जलाए रखेंगे,
आस भी बचाए रखेंगे,
सर को भी उठाये रखेंगे,
शोले भी दबाये रखेंगे,
और चाहत भी बचाए रखेंगे......उत्तम विचार, उत्तम कविता....

साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर रचना,धन्यवाद.

Vinay said...

आग लगी है कई तरह की, हमें बचाना है उपवन को।
सभी सुमन के मान बराबर, चाहत ऐसी बचाये रखना॥

बहुत बढ़िया

ओम आर्य said...

aapki rachane bahut sundar bhaaw liye huye hai ........atisundar

निर्मला कपिला said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना है बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नहीं शेष अब सहनशीलता,
ह्रदय में शोले सुलग रहे हैं।
हाथ मिले आपस में तबतक,
उन शोलों को दबाये रखना॥
आग लगी है कई तरह की,
हमें बचाना है उपवन को।
सभी सुमन के मान बराबर,
चाहत ऐसी बचाये रखना॥

सुमन जी!
ये छंद दिल को छू गये।
आभार!

KK Yadav said...

आग लगी है कई तरह की, हमें बचाना है उपवन को।
सभी सुमन के मान बराबर, चाहत ऐसी बचाये रखना॥
...samajik sadbhav ko badhati sundar panktiyan...behatrin prastuti.

प्रशांत गुप्ता said...

नहीं शेष अब सहनशीलता, ह्रदय में शोले सुलग रहे हैं।
हाथ मिले आपस में तबतक, उन शोलों को दबाये रखना॥


Bahut khub , kranti hai in shabdo mai

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छी नसीहत> वर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥

Akshitaa (Pakhi) said...

Sundar likha apne.

Mere Blog par bhi ayen aur meri new pic. dekhen.

राज भाटिय़ा said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥
सुमन जी आप ने सच उडेल दिया इस कविता मै, बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

सबसे पहले श्यामल जी को प्रणाम और माफ़ी की मैं कमेन्ट नहीं कर सका कमेन्ट नहीं किये इसका मतलब ये नहीं की मैं आप को पढता नहीं था मैं पढता था लेकिन कुछ काम की व्यस्तता अधिक थी इसी लिए मैं कुछ लिख नहीं पाता था इसे आप बहाना भी समझ सकते है और हूँ भी सकता है पर मैं इस बहाने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
आप की रचनाये हमेशा से ही मेरा मार्ग दर्शन करती रही है ये लायने सोचने को मजबूर करती है
मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

अजित वडनेरकर said...

सुंदर, सार्थक रचना...
इब्ने इंशा की कुछ ग़ज़लें याद आ गईं। इसी बहर में वे बहुत खूबसूरती से रुमानी रचनाएं लिखते थे।

M VERMA said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
फिर भी यह खूबसूरत चाहत -- आशावाद इसी को तो कहते है
बहुत खूब

श्यामल सुमन said...

बड़भागी मैं खुद को मानूँ हरदम सबका प्यार मिला
आभारी है सुमन सभी का क्रम टिप्पणी का बनाये रखना

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Asha Joglekar said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥

बहुत खूबसूरत रचना ।

Riya Sharma said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥

सच्चाई लिए सही चित्रण .

बहुत खूब !!

ज्योति सिंह said...

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को।
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना॥
bahut sundar .

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना मुझे बेहद पसंद आया!

admin said...

Ye chahat hamen bhi bhaane lagi hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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