हर मन का उच्चारण है
मन उलझन का कारण है
मन से मन की सुन बातें जो
मन में करता धारण है
ऐसे मन वाले को अक्सर
मन कहता साधारण है
मन लेकिन मनमानी करता
मन का मानव चारण है
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
सुमन देखता मन-दर्पण में
कुछ भी नहीं अकारण है
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28 comments:
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
बेह्द खूबसूरत रचना या मन का आईना
सचमुच काफी अच्छी कविता लिखी है। बधाई।
मस्तिष्क के सारे क्रिया कलापों का योग ही मन है
bahut sundar shayamal ji aajkal kaya naja taaja chal raha hai kya kar rahe hai?
man par ye varnan achcha laga... but mujhe ek confusion bahut dino se hain..ki man ka existence kaha hai..... dil aur dimaag to jante hain.....par man inse kaise alag hain....... will u pls. specify me.
हर मन का उच्चारण है
मन उलझन का कारण है
अरे वाह....आप तो बहुत जल्दी - jaldi post badalte हैं ....kamaal hai itana kaise likh lete hain....!!
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
बहुत सुंदर कविता
धन्यवाद
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
behad khubsurat,man ka ye vishleshan bahut pasand aaya.
मन लेकिन मनमानी करता
मन का मानव चारण है
waah bhaiya, man ki itni baatein , bahut hi sundar kavita bani hai,
gazab..
hriday se badhai...
मन से आभारी हूँ सबका
प्यार सुमन मनभावन है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
शब्दों के चमत्कार से सजी
बढ़िया पोस्ट।
बहुत सुंदर
ऐसे मन वाले को अक्सर
मन कहता साधारण है.......sahi hai
man darpan mein dikhte sare rang hain
.......bahut hi badhiya prastuti.
saadar prnaam aap ka lekhan hamesha hi arth purn hota hai aur nayiprrna deta hai
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
बहुत ही सुन्दर भाव लगे बधाई!
श्यामल सुमन जी
एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।
कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।
आपकी प्रतीक्षा में,
विनम्र,
जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
यह इतनी बड़ी बात कह दी आपने कि क्या कहूँ....इसे यदि मन में धारण कर लिया जाय तो फिर कहना ही क्या...
बहुत ही सुन्दर प्रेरणादायी इस रचना के लिए आपका आभार.
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
.....vakai ye panktiyan padhkar dil kah utha-vah-vah !!
मन को शब्दो मे बाँधने के शब्दकार को नमन है ।
मन की सुन्दर अभिव्यक्ति।
लाजवाब काफ़ियों संग सजी-धजी एक लाजवाब रचना श्यामल जी।
बेहतरीन !
मन अपना भी कहता कुछ ऐसा,
यह ब्लॉग बहुत मनभावन है..........
बहुत सुंदर....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है
श्यामल जी बहुत सुन्दर मन के भावों को दर्शाती और अच्छा संदेश देती रचना के लिये बधाई
मन को कर लें काबू गर हम
मन फ़िर अपना अभ्यारण है
श्याम सखा
मन की चंचलता और मन का निग्रह तो शाश्वत विषय हैं।
विचित्र है मन।
baar baar padhane ka man karata hai
aapki kavita..
sundar bhav..
bahut sundar aur sarthak bhi ...!!
shubhkamnayen .
टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है
(पता नहीं चचा सहगल जी यही गीत गाया
जब दिल ही टूट गया
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