धन-पद की ऐसी लिप्सा जो, मानवता पर भारी है।
इस दुनिया में प्रायः मानव, लगता आज भिखारी है।।
माँगे कोई बड़े लोग से और कोई भगवान से।
चाहत प्रभुता पाने की तो, गलबाँही शैतान से।
खुद की सुख सुविधा बढ़ जाये, सबको यही बीमारी है।
इस दुनिया में -----
कोई व्याकुल प्यार की खातिर, किसी की चाहत काया।
चिन्तन में चाहत की उलझन, घुर फिर कहते जग माया।
चिपकाया है चेहरे पर जो, वह मुस्कान उधारी है।
इस दुनिया में -----
किसी की चाहत स्वर्गधाम तो माँग रहा सन्तान कोई।
अपमानित कर्मों के बदले, माँग रहा सम्मान कोई ।
सुमन विकल है नश्वर जीवन फिर भी मारामारी है?
इस दुनिया में -----
इस दुनिया में प्रायः मानव, लगता आज भिखारी है।।
माँगे कोई बड़े लोग से और कोई भगवान से।
चाहत प्रभुता पाने की तो, गलबाँही शैतान से।
खुद की सुख सुविधा बढ़ जाये, सबको यही बीमारी है।
इस दुनिया में -----
कोई व्याकुल प्यार की खातिर, किसी की चाहत काया।
चिन्तन में चाहत की उलझन, घुर फिर कहते जग माया।
चिपकाया है चेहरे पर जो, वह मुस्कान उधारी है।
इस दुनिया में -----
किसी की चाहत स्वर्गधाम तो माँग रहा सन्तान कोई।
अपमानित कर्मों के बदले, माँग रहा सम्मान कोई ।
सुमन विकल है नश्वर जीवन फिर भी मारामारी है?
इस दुनिया में -----
36 comments:
सही कहा आपने ।
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
ये बात सही है ........... आपने सही माध्यम से बताया है........... लाजवाब
श्यामल सुमनजी, बहुत अच्छा लिखा है आपने..बधाई ! आप से कुछ जरूरी सहयोग लेना है, आप मुझे ०९७०९०८३६६४ पर संपर्क करें !
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
ये बात सही है ........... आपने सही माध्यम से बताया है........... लाजवाब
वाह क्या बात है. बहुत सुन्दर माध्यम लाचारी जताने का.
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
सब पर टिप्पणी न देने की कुछ न कुछ लाचारी है
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
....bilkul sahi
http://podcast.hindyugm.com/2009/07/barish-ka-mausam-podcast-kavi-sammelan.html
agle sammelan mein aap aamantrit hain
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
शब्द भाव को जोड़ जोड़ कर कविता खूब संवारी है,
बहुत ही करिने से ब्यान करी है आपने ......अतिसुन्दर रचना
बहुत सही कहा.
रामराम,
नमस्कार श्यामल जी मैं दुबारा कहूँगा आप की रचनाये यथार्त के धरातल पर तीखी चोट करते हुए हथौडा सा बार करती है ये तभी हो सकता है जब आप सामाजिक परिवर्तनों मेंमें हो रहे बदलाब के प्रति सजग हो और और उसे आत्मसत करते हुए चले आप से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
अत्यंत प्रभावशाली रचना है
---
शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
सब पर टिप्पणी न देने की
कुछ न कुछ लाचारी है
इस दुनिया में प्रायः मुझको
लगते सभी भिखारी है।।
सुमन जी!
बिल्कुल बेलाग बात कही है।
बधाई।
यहाँ तो सभी भिखारी है, कौन किससे नही भीख मांगता,आमीर मागता गरीब से , गरीब मागता अमीर से , नेता मागता देश से यहाँ सब भिखारी है ।
Dil se nikli baaten.
बाँट सकूँ जीवन का अनुभव बस इसकी तैयारी है।
सबका स्नेह समर्थन पाकर सुमन सदा आभारी है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत बहुत सही कहा आपने......इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो किसी न किसी लालसा के वश में नहीं....
सदैव की भांति महत सन्देश लिए अतिसुन्दर रचना....
har alfaz sach hai,bahut achhi lagi rachana.badhai
achchi rachna...
सुमन जी सही याद दिलाया है हम सब बिखरी हैं |
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
सब पर टिप्पणी न देने की कुछ न कुछ लाचारी है
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।
टिप्पणी न देने की एक लाचारी ये भी है की जब वो टिप्पणी नहीं देता तो मैं क्यों दूं, क्यों मैंने सही कहा ना ?
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर
सही कहा...,..बधाई.
gazab !
bahut kuchh kah diya
sab kuchh kah diya
waah
anand aa gaya................badhaai !
ऐसी लिप्सा धन-पद की जो मानवता पर भारी है।
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
waah kya baat hai .magar mujhe tippani ki laalsa nahi .jo saath chalate hai unke saath chalane ki koshish hai .main karm par dhayan deti hoon .fal pe nahi ,sochane se kisi ko haasil hota hai .
"ऐसी लिप्सा धन-पद की जो मानवता पर भारी है।
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।"
आप की रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई।
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
कहने के लिये इशारा काफी है. सही कहा है आपने.
रचना अच्छी है.
बहुत अच्छी रचना गढ़ी आपने, बहुत अच्छी रचना हमने पढ़ी
जाएँ भिक्षाटन पर बाकी ब्लागर, टिपण्णी के आप अधिकारी हैं
बहुत अच्छी रचना भईया....
आपका हेडर ब्लाग से बड़ा क्यों है। उसे आप फोटोशॉप में जाकर पत्रिका के अनुकूल काट कर फिर से ले-आउट के हेडर में लोड करें।तब जाकर वह फीट बैठेगा।
लेकिन उस से पहले आप ले-आउट के हेडर में जाकर shrink to fit को टिक कर उसी हेडर को फिर से लोड करें। हो सकता है,फिट हो जाय।अगर न हो तो उपर की प्रक्रिया अपना कर क्रोप-अप करना होगा इमेज को और फिर से लोड करना होगा।
कविता बहुत अच्छी लगी और उसका उपसंहार में चलते-चलते जो लिखा है वह ब्लॉगर्स का दर्द बयाँ कर गया।
पत्रिका-गुंजन
आपका स्वागत है एक साहित्यिक पहल से जुड़ने का
श्यामल जी,
भिखारी को पढ़ने बाद यह लगा कि वस्तुतः हम भी एक भिखारी ही हैं, बड़ा व्यापक दृष्टीकोण है आपका लाजवाब।
हमारी मनोवृत्तियों पर व्यंग्य कसते हुये चिकोटी काटती हुई रचना, सुन्दर है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ही सुन्दर रचना.........साधूवाद.
गुलमोहर का फूल
अच्छी रचना है भाई बधाई स्वीकारें...
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
सब पर टिप्पणी न देने की कुछ न कुछ लाचारी है
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
aapआने तो अपनी कह दी अब अपनी बारी है
खरी खरी सुनाना प्यार से ये कितनी होशियारी है
बहुत बडिया सटीक अभिव्यक्ति है
अत्यन्त सुंदर रचना! बहुत अच्छा लगा!
wah suman ji ,
दिल की बातें लिखकर टिप्पणी माँग रहे हैं ब्लागर।
टिप्पणी तो खुद मिल जायेगी रचना हो गर बेहतर।
सब पर टिप्पणी न देने की कुछ न कुछ लाचारी है
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
kya baat kahi hai.blogging ka sach belaag. wah.
क्या खूब लिखते हैं --चलते चलते बड़ा सच लिखा पर आपको तो बिन मांगे काफ़ी टिप्पणिया मिल जाती होंगी कि आप अच्छा लिखते हैं ।
इस दुनिया में प्रायः मुझको लगता सभी भिखारी है।।
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