Sunday, August 2, 2009

द्वंद्व

जिसे बनाया था हमने अपना, उसी ने हमको भुला दिया
बना मसीहा जो इस वतन का, उसी ने सबको रुला दिया

बढ़े लोक और तंत्र फँसे है, ऊँचे महलों के पंजों में
वे बात करते आदर्शों की, आचरण को भुला दिया

नियम एक है प्रतिदिन का यह, कुआँ खोदकर पानी पीना
नहीं भींगती सूखी ममता, भूखे शिशु को सुला दिया

खोया है इंसान भीड़ में, मज़हब के चौराहों पर
भरे तिजोरी मुल्ला-पंडित, नहीं किसी का भला किया

बने भगत सिंह पड़ोसी घर में, छुपी ये चाहत सभी के मन में।
इसी द्वंद्व ने उपवन के सब, कली-सुमन को जला दिया।।

25 comments:

वाणी गीत said...

बने भगत सिंह पडोसी घर में..!!
अच्छी रचना ..!!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

निर्मला कपिला said...

खोया है इंसान भीड़ में, मज़हब के चौराहों पर
भरे तिजोरी मुल्ला-पंडित, नहीं किसी का भला किया
बहुत ही सत्य अभिवयक्ति है मगर प्स्डोसी के घर मे भगत सिन्ह ? भगत सिन्ह तो भ भारत मे ही पैदा हो सकते हैं वहाँ तो भगत सिन्ह के भेस मे लुटेरे हैं बहुत बडिया कविता है आभार्

seema gupta said...

नियम एक है प्रतिदिन का यह, कुआँ खोदकर पानी पीना
नहीं भींगती सूखी ममता, भूखे शिशु को सुला दिया
बेहद भावनात्मक पंक्तियाँ...

regards

समय चक्र said...

जिसे बनाया था हमने अपना, उसी ने हमको भुला दिया
बना मसीहा जो इस वतन का, उसी ने सबको रुला दिया

जज्बो से लबरेज अच्छी रचना..आभार.

विनोद कुमार पांडेय said...

बने भगत सिंह पड़ोसी घर में, छुपी ये चाहत सभी के मन में।
इसी द्वंद्व ने उपवन के सब, कली-सुमन को जला दिया।। ..

kitana sundar aur bhavpurn rachana.
aaj kal sab isi dand me jhujh rahe hai...
aur insaniyat ko to bhula hi diye.
badhiya vichar..dhanywaad..

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया !!

ओम आर्य said...

bahut hi sundar sundar baate kahi aapane.........sundar

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सभी की चाह यही है कि पड़ोसी के यहां ही भगत सिंह पैदा हॊं.

Unknown said...

sumanji,
kitni bhi vyastta kyon na ho....
aapki rachnaa padhe bin din pooraa nahin hota......
waah waah !
bahut umdaa ghazal..............

सदा said...

बने भगत सिंह पड़ोसी घर में, छुपी ये चाहत सभी के मन में।
बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में व्‍यक्‍त सत्‍यता आभार्

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई।

दिगम्बर नासवा said...

बढ़े लोक और तंत्र फँसे है, ऊँचे महलों के पंजों में
वे बात करते आदर्शों की, आचरण को भुला दिया

bahoot lajawaab tarike से piroya है इस gazal को आपने..........

स्वप्न मञ्जूषा said...

नियम एक है प्रतिदिन का यह, कुआँ खोदकर पानी पीना
नहीं भींगती सूखी ममता, भूखे शिशु को सुला दिया
क्या बात है भईया, बहुत ही बढ़िया लिखा है ...
यही द्वंद है... सजीव चित्रण...
बधाई...

admin said...

Achhee lage aapki kavita.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a

BrijmohanShrivastava said...

सुमन जी |पहला शेर और उसी शेर ने न जाने क्या क्या याद दिला दिया |
...............................................
जिनकी मेहनत से तुम्हे ताज मिला तख्त मिला
उनके सपनों से जनाजे में तो शामिल होते
तुमको शतरंज की चालों से नहीं वक्त मिला

Gyan Dutt Pandey said...

बढ़े लोक और तंत्र फँसे है, ऊँचे महलों के पंजों में
वे बात करते आदर्शों की, आचरण को भुला दिया

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बहुत सशक्त रियलिज्म है!

श्यामल सुमन said...

ब्लाग पे लिखता हूँ जो कुछ बहुत प्यार मिलता है
प्रेषित है आभार सभी को जिसने सुमन खिला दिया

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

kshama said...

वाह ..! आप हर प्यार और टिप्पणी के काबिल हैं ...! गज़ब लय बद्धता है ...अल्फाजों का ,खैर , क्या कहने ...!

somadri said...

बने भगत सिंह पड़ोसी घर में, छुपी ये चाहत सभी के मन में।
इसी द्वंद्व ने उपवन के सब, कली-सुमन को जला दिया।

इन पक्तियों में भगत सिंह शब्द भावना को तोड़ रहा है, उनके जैसे क्रातिकारी हो तो उपवन में कांटे नहीं रहेंगे


http://som-ras.blogspot.com

योगेन्द्र मौदगिल said...

भावात्मक अभिव्यक्ति.... वाह..

Prem Farukhabadi said...

खोया है इंसान भीड़ में, मज़हब के चौराहों पर
भरे तिजोरी मुल्ला-पंडित, नहीं किसी का भला किया

bahut hi sundar jagrook bhav.badhai!

karuna said...

|सुमनजी भावों को व्यक्त करने की शैली बहुत गहरी और सशक्त है ,बहुत सुन्दर रचना |

संजीव गौतम said...

बने भगत सिंह पड़ोसी घर में, छुपी ये चाहत सभी के मन में।
इसी द्वंद्व ने उपवन के सब, कली-सुमन को जला दिया।।
बिल्कुल सही अभिव्यक्ति दी है आपने. सब यही दुआ मांगते हैं कि धन मिले तो मुझे और भगत सिंह पैदा हों तो पडौसी के घर. बहुत बढिया

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

आपकी कविता से ही भगत सिंह पे ये पंग्तियाँ याद आ गई :

भगत सिंह फिर कभी काया न लेना भारतवासी की
देश भक्ती की सजा आज भी तुम्हें मिलेगी फांसी की |

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