उम्र बढ़ती गयी इश्क चढ़ता गया
ख्वाब सजते रहे दिन गुजरता गया
उम्र छोटी बहुत जिस्म से प्यार की
इश्क आँखों से होकर निखरता गया
उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया
चाँदनी रात में कुमुदिनी सो गयी
चाँद का जो चमन था उजड़ता गया
बात ईमान की आधुनिकता नहीं
बस यहीं पर सुमन भी पिछड़ता गया
Tuesday, December 15, 2009
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रचना में विस्तार
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
30 comments:
उम्र बढ़ती गयी इश्क चढ़ता गया
ख्वाब सजते रहे दिन गुजरता गया
बहुत सुन्दर
उम्र गुजरती गई पड़ाव दर पड़ाव आते रहे
उम्र बढ़ती गई अनुभवों के ख्बाव सजते रहे
बहुत हीं सुन्दर !!!!
उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया
आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
वाह श्यामल जी वाह,
सभी एक से बढके एक , मजा आ गया ।
kyaa baat hai...........
उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया
bahut khoob !
kamaal ki kaarigari waali gazal..
धन्यवाद जी , आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा हौसला बढाने के लिए ...
आपके ब्लॉग पे आकर बहुत ही अच्छा लगा कई खुबसुरत रचनाये पड़ने को मिली ...बहुत-बहुत धन्यवाद आपका !
बहुत खूब...
बहुत खूब !
बात ईमान की आधुनिकता नहीं
बस यहीं पर सुमन भी पिछड़ता गया
suman ji ye to dil ko bha gain.
प्रेम-रत व्यक्तित्व का सहज परिचय -
"उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया"
प्रविष्टि का आभार ।
चाँदनी रात में कुमुदिनी सो गयी
चाँद का जो चमन था उजड़ता गया
बात ईमान की आधुनिकता नहीं
बस यहीं पर सुमन भी पिछड़ता गया
Ati sundar suman jee !
बात ईमान की आधुनिकता नहीं
बस यहीं पर सुमन भी पिछड़ता गया
बेहतरीन ...
उम्र बढ़ती गयी इश्क चढ़ता गया
ख्वाब सजते रहे दिन गुजरता गया
khoobsoorat khyal
बात ईमान की आधुनिकता नहीं
बस यहीं पर सुमन भी पिछड़ता गया
bahut hi sundar baat.
pls visit at-http://vandana-zindagi.blogspot.com
Wahwa..Sunder rachna..
का भाई इश्क का निखार केवल आँखों
में ही होता रहेगा ?
कमाल की रचना है सुमन जी। सुमन की तरह खिलते रहिए।
प्यार का असली मज़ा तो उमर चढ़ने के बाद ही आता है।
बहुत सुंदर रचना ।
उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया ।
बहुत ही सुन्दर ।
अच्छी रचना।
टिप्पणियाँ भी मिलीं मैंने जब जब लिखा
है सुमन का नमन प्यार बढ़ता गया
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बस मैं इतना ही कहूँगी वाह सुमन जी !!
उम्र छोटी बहुत जिस्म से प्यार की
इश्क आँखों से आकर निखरता गया
सुमन जी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई...
नीरज
वाह सुमन जी! एकदम चुस्त बहर पे सधी हुई ग़ज़ल...बेहतरीन शेर!!
खास कर मक्ता तो खूब बुना है आपने सर जी।
उम्र छोटी बहुत जिस्म से प्यार की
इश्क आँखों से आकर निखरता गया
उलझनों में उलझने की फितरत नहीं
प्यार उलझन में फँसकर सँवरता गया
shaandar gazal,aafrin
बस यहीं पर सुमन पिछड़ गया -मुनव्बर राणा साहेब का शेर भी है "" हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते, //अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते ।""
बहुत बढ़िया!!
Adhik kahne layak kuchh nahi........BAS.... WAAH WAAH WAAH !!!!! LAJAWAAB !!!
wah MATALA me gazab ka atmbodh...
वाह श्यामल जी वाह,
सभी एक से बढके एक , मजा आ गया ।
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत सुंदर..
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