मिले थे राह में अचानक कुछ पहर के लिए
बसा लिया है तुझे दिल में उम्र भर के लिए
बेचैन निगाहों से नजरें जहाँ मिलीं
देखा कि इक तड़प है हमसफर के लिए
अनजान ही मिले थे, दिल का पता मिला
बन जाऊँ खत मैं खुद ही इक असर के लिए
बस तीरगी थी अबतक रौशन हुआ जहाँ
क्यों कसक अभी है दिल में इक सहर के लिए
खुशियाँ मिलीं हैं सारी जब से मिलन हुआ
खुशबू, शजर सुमन की है नजर के लिए
Sunday, December 27, 2009
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
19 comments:
बेहतरीन!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
"अनजान ही मिले थे, दिल का पता मिला
बन जाऊँ खत मैं खुद ही इक असर के लिए"
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ......!
बेहतरीन....!
ग़ज़ल के बेताज बादशाह..बहुत बहुत बधाई..आपके ग़ज़लें दिल जीत लेती है..यह रचना भी अत्यन्त प्रभावशाली है...प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत अच्छा लिखा है आपने ..मेरी शुभकामनायें..
बहुत सुंदर.
बहुत लाजवाब. नये साल की रामराम.
रामराम.
अनजान ही मिले थे, दिल का पता मिला
बन जाऊँ खत मैं खुद ही इक असर के लिए
bahut hi badhiyaa
पढ़कर आनंद की प्राप्ति हुई.
बस तीरगी थी अबतक रौशन हुआ जहाँ
क्यों कसक अभी है दिल में इक सहर के लिए
एक-से-बढ़कर-एक शेर लिए ख़ूबसूरत ग़ज़ल। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
पढ़कर आनंद की प्राप्ति हुई.
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
बहुत बढ़िया रचना।
नव वर्ष की शुभकामनायें।
अनजान ही मिले थे, दिल का पता मिला
बन जाऊँ खत मैं खुद ही इक असर के लिए
बहुत ही सुन्दर
सुन्दर कविता!
आज के चर्चा मंच में इसे शामिल किया है!
मिला जो स्नेह मुझे सचमुच खुशियाँ भी मिलीं
सुमन का दिल से है आभार ब्लागर के लिए
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मन को स्पंदित करने वाली रचना पढ़ाने के लिया आभार.....
बेचैन निगाहों से नजरें जहाँ मिलीं
देखा कि इक तड़प है हमसफर के लिए
सुन्दर अति सुन्दर पंक्ति व कविता ।
"अनजान ही मिले थे, दिल का पता मिला
बन जाऊँ खत मैं खुद ही इक असर के लिए"
सबसे शानदार शेर | गजल सुन्दर है | आभार |
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