मैं भी हँसता रहा वो हँसाते रहे
दिल की आपस में दूरी बढ़ाते रहे
न तो पीने को पानी न आँखों में है
इसलिए आँसुओं से नहाते रहे
जब जरूरत पड़ी साथ मुझको लिया
वक्त बदला किनारा लगाते रहे
हाथ मिलते रहे, बेरूखी आँख में
वो मशीनों सा बस मुस्कुराते रहे
जिसने लूटा चमन, बागबां है वही
इस चमन के सुमन छटपटाते रहे
Sunday, January 17, 2010
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रचना में विस्तार
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
15 comments:
nice
मैं भी हँसता रहा वो हँसाते रहे
दिल की आपस में दूरी बढ़ाते रहे
-क्या बात है..बहुत खूब!!
जब जरूरत पड़ी साथ मुझको लिया
वक्त बदला किनारा लगाते रहे...
बहुत ही सुंदर.
न तो पीने को पानी न आँखों में है
इसलिए आँसुओं से नहाते रहे
वाह
हाथ मिलते रहे, बेरूखी आँख में
वो मशीनों सा बस मुस्कुराते रहे.....
bahut achha kaha aapne ! hum ho hi gaye hain aise... ! achhi rachna ke liye badhai !
जिसने लूटा चमन, बागबां है वही
इस चमन के सुमन छटपटाते रहे !!
WAAH !!! WAAH !!! WAAH !!!
ATISUNDAR .....
जब जरूरत पड़ी साथ मुझको लिया
वक्त बदला किनारा लगाते रहे
सत्य का बोध कराती पंक्तियाँ।
सुन्दर।
"जिसने लूटा चमन, बागबां है वही
इस चमन के सुमन छटपटाते रहे "
बहुत ही सुन्दर रचना !! आप ऐसे ही लिखते रहें !
मैं भी हँसता रहा वो हँसाते रहे
दिल की आपस में दूरी बढ़ाते रहे
वाह क्या बात है
sabh panktian ek se badh kar ek. wah.
शुक्रिया पेश है आपके प्यार का
हौसला यूँ ही मेरा बढ़ाते रहे
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut hi sundar ........kis kis ki tarif karoon.
bahut badhiyaa.
i liked it.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने!
बहुत खूब शुभकामनायें
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