संधर्ष न किया तो धिक्कार जिन्दगी है
काँटों का सेज फिर भी स्वीकार जिन्दगी है
मिलता सुकूँ हवा से जो तन पे हो पसीना
भूखे को जैसे रोटी अभिसार जिन्दगी है
इन्सानियत की कीमत, ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
क्या माँगने से हिस्से की धूप भी मिलेगी
हक छीनकर के पाना अधिकार जिन्दगी है
गुजरो जिधर से यारो बन के सुमन ही गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है
काँटों का सेज फिर भी स्वीकार जिन्दगी है
मिलता सुकूँ हवा से जो तन पे हो पसीना
भूखे को जैसे रोटी अभिसार जिन्दगी है
इन्सानियत की कीमत, ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
क्या माँगने से हिस्से की धूप भी मिलेगी
हक छीनकर के पाना अधिकार जिन्दगी है
गुजरो जिधर से यारो बन के सुमन ही गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है
26 comments:
इन्सानियत की कीमत ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
और गुज़रो जिधर से सुमन-=--- बहुत कमाल की पँक्तियाँ हैं । पूरी कविता आज की जिन्दगी का सच ब्याँ करती सी हैं बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिये।
सभी पंक्तियों को पढ़ने के बात मन में वाह वाह निकला।
आपके लिए सिर्फ वाह वाह....
इन्सानियत की कीमत ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
duniya ka ek aapne gazal me piroya hai bahut badhiya lagi..dhanywaad suman ji
बहुत बेहतरीन!
"संधर्ष न किया तो धिक्कार जिन्दगी है
काँटों सेज कहकर स्वीकार जिन्दगी है"
वाह श्यामल जी बहुत खूब .
काँटों की सेज देखी , फूलों की सेज देखी
संघर्ष भी लगे तो , अपना न हो फ़साना
संधर्ष न किया तो धिक्कार जिन्दगी है
काँटों सेज कहकर स्वीकार जिन्दगी है..
khoobsoorat laine.
संधर्ष न किया तो धिक्कार जिन्दगी है
काँटों सेज कहकर स्वीकार जिन्दगी है
बहुत सुन्दर श्यामल जी !
श्यामल जी
सदा सुखी रहो
गुजरो जिधर से खुशबु बन के सुमन के गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिंदगी है
वाह क्या दर्द भरे शब्द हैं इस गज़ल में
आपकी अंतिम शेर में बहुत ही जज्बात भरा हुआ है
और ऐसा लगता है कि आपने जी कर लिखा है इस गज़ल को
इतनी पसंद आयी पढते पढते अश्रुधारा बह निकली कृपया इस गज़ल को मेरी ऑरकुट भेज देवें
आशीर्वाद के साथ गुड्डों दादी चिकागो से
गुजरो जिधर से खुशबू बन के सुमन की गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है।।
waah ..........bahut sundar baat kahi........yun to zindagi har pal ek jung hai magar jiyo to aise ki sabki yaadon mein bas jao.
गुजरो जिधर से खुशबू बन के सुमन की गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है।।
bahut hi badhiya rachANA ....badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
waah..bahut hi badhiyaa
इन्सानियत की कीमत ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
bahut umda bhav aur sarvotam rachna hai....
वाह श्यामल जी बहुत खूब .
गुजरो जिधर से खुशबू बन के सुमन की गुजरो
कोई भी कह सके ना लाचार जिन्दगी है।।
क्या बात है श्यामल जी. बहुत खूब. गणतंत्र दिवस मुबारक हो.
इन्सानियत की कीमत ईमान की भी कीमत
हालात ऐसे लगते व्यापार जिन्दगी है
हालात तो कुछ ऐसे ही हैं।
अच्छी रचना।
बहुत सुंदर रचना लगी.
आप को गणतंत्र दिवस की मंगलमय कामना
धन्यवाद
happy republic day.
bahut badhiyaa likhaa.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
संधर्ष न किया तो धिक्कार जिन्दगी है
काँटों का सेज कहकर स्वीकार जिन्दगी है
मिलता सुकूँ हवा से जो तन पे हो पसीना
भूखे की जैसे रोटी अभिसार जिन्दगी है
Waah!
Gantantr diwas kee dheron shubhkamnayen!
आप सब के प्रति धन्यवाद सहित विनम्र आभार प्रेषित है।
अब फिर तीन फरवरी के बाद मुलाकात होगी नेट पर - तब तक अलविदा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com
सही पकड़ा है कवि ने जिन्दगी को!
नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
charon taraf apni khushbu bikherta ek ek sher, behatareen.sumanji.
har ek panktee me vajan hai...
bahut sunder rachana............
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
बहुत सुन्दर रचना ! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
WAAH !!! WAAH !!! WAAH !!! LAJAWAAB BHAI JI, LAJAWAAB !!! KYA LIKHA HAI AAPNE...WAAH !!!
excellent.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
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