Wednesday, February 10, 2010

वासंती दोहे

क्या वसंत का मोल है, जब न प्रियतम पास?
कोयल की हर कूक में, पिया मिलन की आस।।

अमराई के संग में, पीले सरसों फूल।
किसके सर बिन्दी लगे, किसके माथे धूल।।

रस कानों में घोलती, मीठी कोयल-तान।
उस मिठास के दर्द से, मीत सभी अन्जान।।

पतझड़ ने आकर कहा, आये द्वार वसंत।
नव-जीवन सबके लिए, विरहिन खोजे कंत।।

सुमन सरस होता गया, मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले, बेचे तन की लाज।।

23 comments:

Randhir Singh Suman said...

सुमन सरस होता गया मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज।। nice

Arvind Mishra said...

वाह भी और आह भी

Yogesh Verma Swapn said...

सुमन सरस होता गया मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज।।

wah, bahut sunder dohe. badhaai.

रानीविशाल said...

सुमन सरस होता गया मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज।।
Waah! Taarif ko shabd nahi milate...Aabhar!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

सुन्दर दोहे!

vandana gupta said...

सुमन सरस होता गया मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज।।
katu satya ujagar kar diya.

गुड्डोदादी said...
This comment has been removed by the author.
संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः
सुमन सरस होता गया जहाँ मिला ऋतुराज
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज

वासंती दोहों में इतना दर्द ?.जीवन के नंगे सच को उकेरने में आपका जवाब नहीं ,सच है वसंत नव जीवन ले कर आता है धरा पर- लकिन करोडों जनगण जिनके घरों में चूल्हे नहीं जलते और वो तन की लाज बेचने को विवश हैं .यह कैसा वसंत
अबला तेरी यही कहानी
आँचल में दूध आँखों में पानी
सभी पंक्तियाँ को पढ़ने के पश्चात रूलाई रोकते नहीं रुक रही
आपको बहुत आशीर्वाद
आपकी गुड्डो दादी चिकागो से

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
सदा सुखी रहो
मेरे देश के जनगण परिवार के घरों में चूल्हा नहीं जलता
मै अपना अमेरिका में सभी कुछ त्याग कर जनता की सेवा संग्राम में कूद जावूंगी आज मुझे विभाजन के समय की यादें ताजा हो आयीं मेरा परिवार स्वतंत्रता के संग्राम में था और चाचा आजाद हिंद सेना में
और कुछ नहीं लिख सकती
गुड्डो दादी चिकागो से

परमजीत सिहँ बाली said...

श्यामल जी,बहुत ही बढ़िया दोहे हैं....

सुमन सरस होता गया मिला जहाँ ऋतुराज।
रोटी जिसको न मिले बेचे तन की लाज।।

M VERMA said...

क्या वसंत का मोल है जब न प्रियतम पास?
बहुत सुन्दर भाव के दोहे : बिलकुल बासंती

रंजना said...

सदैव की भांति उत्कृष्ट प्रेरक, मन मस्तिष्क को खुराक देती अतिसुन्दर रचना....

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर दोहे हैं।
तकनिकी दृष्टि से भी पूर्णतय : त्रुटिहीन।

चन्द्र कुमार सोनी said...

itihaas ki yaad dilaa di hain aapne.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com

श्यामल सुमन said...

बड़भागी श्यामल सुमन मिला बहुत ही प्यार।
कलम की उर्जा बन गयी प्रेषित है आभार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Urmi said...

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब दोहे ! बधाई!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह खूब बासन्ती रंग बिखेरा है.

हर्षिता said...

ख़ूबसूरत और लाजवाब दोहे ! बधाई!

दीपक 'मशाल' said...

आपकी कवितायेँ सब से अलग ही होती हैं.. आसानी से बिसराई नहीं जा सकतीं....
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

Akhilesh pal blog said...

bahoot achha

Asha Joglekar said...

वसंत के सुंदर रंग बिखेरते ये दोहे कुछ दर्द भी लिये हुए हैं ।
रस कानों में घोलती मीठी कोयल-तान।
उस मिठास के दर्द से प्रायः सब अन्जान।।
वाह !

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