Thursday, April 8, 2010

कितना कठिन है यारो


इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो-रो-के मुस्कुराना कितना कठिन है यारो

जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो

कितनों को गिराया है महलों के इस सफर ने
गिरतों को नित उठाना कितना कठिन है यारो

चाहा था दिल ने जिसको गर दूर वो गया तो
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो

पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो

23 comments:

दीपक 'मशाल' said...

tazurbe aur sandesh ka sammishran hai rachna.. achchha laga padhna.

Randhir Singh Suman said...

पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो .nice

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कितनों को गिरा करके महलों का सफर होता
गिरने से नित बचाना कितना कठिन है यारो

Bahut sundar !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो

bahut sundar sher hai !

वाणी गीत said...

रो कर मुस्कुराना कितना कठिन है यारों ...
मदहोश को जगाना भी ...
सत्य वचन ...!!
पाने से त्यागना आसान है ... बहुत कम इंसानों के लिए ...
वर्ना तो पाने के लिए मार काट मची है ...

Urmi said...

चाहा था दिल से जिसको गर दूर चला जाए
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना!

संजय भास्‍कर said...

रो कर मुस्कुराना कितना कठिन है यारों .

.......बहुत खूब, लाजबाब !

रश्मि प्रभा... said...

इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
bahut badhiyaa

vandana gupta said...

चाहा था दिल से जिसको गर दूर चला जाए
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो

क्या बात कही है…………॥बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

रंजना said...

वाह,क्या बात कही....

बहुत ही सुन्दर रचना...

इतनी व्यस्तता में भी आपको इतना क्रियाशील देखकर मैं सदा ही आपसे प्रेरणा लेने का प्रयास करती हूँ भैया...

M VERMA said...

कितनों को गिरा करके महलों का सफर होता
और फिर इस सफर के लिये होड़ सी लगी है. कौन गिरा कौन मिटा सरोकार जो नही है
सुन्दर रचना

डॉ टी एस दराल said...

इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो

बहुत सही लिखा है सुमन जी ।

रुलाने वाले तो लाखों मिल जायेंगे
किसी रोते को हंसाओं , तो जाने ।

अच्छी रचना ।

चन्द्र कुमार सोनी said...

kathin bhi nahi hain ji, asafaltaa hame ye bataati hain ki--hamaare prayaaso main kahi naa kahi, koi naa koi kami hain......
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

प्रवीण पाण्डेय said...

बात आसान हो और कह भी न सके हम,
मन का व्यापार कितना कठिन है यारो ।

Gyan Dutt Pandey said...

रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो

ओह, सच में - यह गहरे कुयें से बाहर निकलने सा कठिन है।

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

pane se tyagna hi achcha laga.....
darshnik andaj hai.

निर्झर'नीर said...

पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो

सुमन जी
..यक़ीनन आपके लेखन की कशिश का जवाब नहीं
हमेशा की तरह लाजवाब

kshama said...

Kya gazab rachana rachi hai!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मक्ते का यह शेर लाजवाब है-
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो
-बधाई।

Asha Joglekar said...

इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो ।
वाह सुमन जी ।

Anonymous said...

उदात्त विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति ! आभार !

kshama said...

इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो

जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो
Aah!

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो..

bahut khubshurat sher........

http://shayarashok.blogspot.com/

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