इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो-रो-के मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो
कितनों को गिराया है महलों के इस सफर ने
गिरतों को नित उठाना कितना कठिन है यारो
चाहा था दिल ने जिसको गर दूर वो गया तो
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो
23 comments:
tazurbe aur sandesh ka sammishran hai rachna.. achchha laga padhna.
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो .nice
कितनों को गिरा करके महलों का सफर होता
गिरने से नित बचाना कितना कठिन है यारो
Bahut sundar !
जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो
bahut sundar sher hai !
रो कर मुस्कुराना कितना कठिन है यारों ...
मदहोश को जगाना भी ...
सत्य वचन ...!!
पाने से त्यागना आसान है ... बहुत कम इंसानों के लिए ...
वर्ना तो पाने के लिए मार काट मची है ...
चाहा था दिल से जिसको गर दूर चला जाए
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना!
रो कर मुस्कुराना कितना कठिन है यारों .
.......बहुत खूब, लाजबाब !
इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
bahut badhiyaa
चाहा था दिल से जिसको गर दूर चला जाए
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो
क्या बात कही है…………॥बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
वाह,क्या बात कही....
बहुत ही सुन्दर रचना...
इतनी व्यस्तता में भी आपको इतना क्रियाशील देखकर मैं सदा ही आपसे प्रेरणा लेने का प्रयास करती हूँ भैया...
कितनों को गिरा करके महलों का सफर होता
और फिर इस सफर के लिये होड़ सी लगी है. कौन गिरा कौन मिटा सरोकार जो नही है
सुन्दर रचना
इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
बहुत सही लिखा है सुमन जी ।
रुलाने वाले तो लाखों मिल जायेंगे
किसी रोते को हंसाओं , तो जाने ।
अच्छी रचना ।
kathin bhi nahi hain ji, asafaltaa hame ye bataati hain ki--hamaare prayaaso main kahi naa kahi, koi naa koi kami hain......
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बात आसान हो और कह भी न सके हम,
मन का व्यापार कितना कठिन है यारो ।
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
ओह, सच में - यह गहरे कुयें से बाहर निकलने सा कठिन है।
pane se tyagna hi achcha laga.....
darshnik andaj hai.
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो
सुमन जी
..यक़ीनन आपके लेखन की कशिश का जवाब नहीं
हमेशा की तरह लाजवाब
Kya gazab rachana rachi hai!
मक्ते का यह शेर लाजवाब है-
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो
-बधाई।
इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो ।
वाह सुमन जी ।
उदात्त विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति ! आभार !
इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो
Aah!
जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो..
bahut khubshurat sher........
http://shayarashok.blogspot.com/
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