यकीन टूटते हर पल ये जमाना क्यूँ है?
खुशी से दूर ये दुनिया फिर सजाना क्यूँ है?
सभी को रास्ता जो सच का दिखाते रहते
रू-ब-रू हो ना आईना से बहाना क्यूँ है?
धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना क्यूँ है?
इस कदर खोये हैं अपने में कौन सुनता है?
कहीं पे चीख तो कहीं पे तराना क्यूँ है?
बुराई कितनी सुमन में कभी न गौर किया
ऊँगलियाँ उठती हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है?
Thursday, May 6, 2010
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27 comments:
श्यामल
चिरंजीव भावः
धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना कयूँ है?
आपकी तो सारी गजल तो झकझोर शब्दों से भरपूर भावुक है काश सभी इसे समझें
खुशी से दूर सभी फिर ये ठिकाना क्यूँ है?
अमन जो लूटते उसका ही जमाना क्यूँ है?
बहुत सुंदर गजल जो दिल में ठिकाना बना लेती है !शुभ कामनाएं !
निश्चय ही उम्दा सोच ,हर इन्सान को अपनी कमियों को भी देखना चाहिए और उसे हर वक्त सुधारने का प्रयास भी करना चाहिए /
बुराई कितनी सुमन में कभी न गौर किया
ऊँगलियाँ उठतीं हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है?
Sadiyon raha yah chalan,
Ek hamhi sahi hain,
sara zamana galat kyun hai?
"धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना क्यूँ है?"
बहुत बढ़िया !!
सभी को रास्ता जो सच का दिखाते रहते
रू-ब-रू हो ना आईना से बहाना क्यूँ है?
बहुत अच्छी लगी जी आप की रचना
बुराई कितनी सुमन में कभी न गौर किया
ऊँगलियाँ उठतीं हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है?
वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल है !
आप कबीर के उस दोहे को फिर से नए रंग में पेश किये हैं, जो की बहुत सुन्दर लग रहा है ! बधाई !
जबाब नहीं । हर शब्द चोट करता हुआ उतर गया ।
sahi baat hain.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
श्यामल जी आप लगातार लिखते जाए क्योंकि आप अच्छा लिख रहे हैं।
हमेशा की शानदार रचना।
--------
पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
सभी को रास्ता जो सच का दिखाते रहते
रू-ब-रू हो ना आईना से बहाना क्यूँ है?
सच का आइना दिखाती रचना ।
हमेशा की तरह बढ़िया सुमन जी ।
Very Good...
इस कदर खोये हैं अपने में कौन सुनता है?
कहीं पे चीख तो कहीं पे तराना क्यूँ है?
बुराई कितनी सुमन में कभी न गौर किया
ऊँगलियाँ उठतीं हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है?
....Yatharth ke dhratal par likhi saargarbhit rachna ke liye bahut dhanyavad.
दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! पर आपके कहने और मेरे पढ़ लेने भर से कुछ नहीं होने का..वक्त आ गया हैं...एक बदलाव लाने का...और ये काम आप लिखने वाले और हम पढने वालों को ही अर्ना होगा...एक बार फिर से कहूँगी .. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है और आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है|
har ek pankti ek seekh ka kaam kar rahi hai.. bahut hi badhiya lagi ye rachna Suman sir
"धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना क्यूँ है?"
धुल गए मैल खारापन न धुला
इसलिए गंगा में नहाना ही है
वैसे किस पंक्ति को अच्छा कहूँ किसको न .....लाजवाब है सारी की सारी पंक्तियाँ ...
बेहद सुन्दर भाव लिए आपने शानदार रूप से रचना प्रस्तुत किया है! लाजवाब! बहुत बहुत बधाई!
धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना कयूँ है?
वाह!
इसी मजमून पर ग़ालिब का एक शेर याद आया -
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम इतने के बस पाक हो गए
सभी को रास्ता जो सच का दिखाते रहते
रू-ब-रू हो ना आईना से बहाना क्यूँ है?
कुशल चितेरे हैं आप तो
बेहतरीन गज़ल
sach men sundar hai..
- vijay
sir apki yah kavita to atyant sundar hai.......
sir apki yah kavita to atyant sundar hai.......
atyant sundar.....
sir
bhaut bhavuk or yathartha panktiya...!!
धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना क्यूँ है?
क्या बात कही....वाह....
सदैव की भांति सुन्दर manmohak rachna...
बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें।
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
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