नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
सितारों के आगे अलग भी है दुनिया
नज़र तो उठाओ उसी की कसर है
मुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
है शब्दों की माला पिरोने की कोशिश
सुमन ये क्या जाने कि कैसा असर है
Thursday, May 27, 2010
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33 comments:
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
सटीक सुन्दर
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ! लाजवाब पंक्तियाँ !
ये एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है , जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
सुंदर गज़ल ..वाह!
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
..इस शेर ने बहुत कुछ कह दिया. आदमी की भाग-दौड़ कभी खत्म नहीं होती,..प्यास कभी नहीं बुझती,,,...नदी मिली, सागर भी माँगा..यही प्यास है.
यह शेर भी बेहद उम्दा है..
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
..बधाई.
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
बेहतरीन ग़ज़ल..सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
वाह ! बहुत बढ़िया शेर हैं भाई !!
अच्छा असर है आपके इस कविता का, आभार /
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
बहुत सुन्दर ...आभार
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
बहुत सुन्दर !
श्यामल जी
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में जहर ही जहर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
बहुत अद्भुत
यही गीत की पंक्ति मुख से निकले के.सी डे जी गाई हुई
दुनियां रंग रंगीली बाबा
बेहतरीन ग़ज़ल..
Bahad asarkarak ! Zindagi ke saare utaar chadhav yahan sama gaye..
एक बेहद उम्दा और विचारणीय ग़ज़ल !
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
लाजवाब ग़ज़ल ,,,बेहतरीन
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।
लाजवाब ..
अच्छी गजल लिखने पर हमने दबा दिया बजर है।
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
वाह वाह जी बहुत सुंदर गलज कही आप ने.
धन्यवाद
डा.रमा द्विवेदी....
बहुत उम्दा ग़ज़ल है....बधाई व शुभकामनाएं
डा.रमा द्विवेदी....
बहुत उम्दा ग़ज़ल है....बधाई व शुभकामनाएं
मुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
वाह वाह क्या बात है! लाजवाब पंक्तियाँ! बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल! बधाई!
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
सही है भाई । आजकल ऐसा ही हो रहा है ।
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
पहली पंक्ति पर ही कुर्बान हो गए..
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
ये एेसी लाइनें हैं कि ध्यान अकृष्ठ कर रही हैं। इन्हीं लाइनों ने पूरी कविता पढऩे पर विवश कर दिया। क्या खूब।
http://udbhavna.blogspot.com/
सत्य वचन जी, सत्य वचन.
बल्कि, मैं तो कहूंगा कटु-सत्य वचन.
बहुत बढ़िया, धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
सुन्दर !
matla इतना खूबसूरत बन पड़ा है की कोई भी कमेन्ट करने लायक आपने नहीं छोड़ा........
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
क्या बात है.......जिंदाबाद.....!
सितारों के आगे अलग भी है दुनिया
नज़र तो उठाओ उसी की कसर है
इस शेर के सामने सजदा करने का जी चाह रहा है.......!
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
क्या जीवन दर्शन बताया है......भाई वाह.....! मुकर्रर !
विवाद में नहीं जाना चाहूँगा मगर ग़ज़ल में हिंदी शब्दों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है....."शहर" शब्द का प्रयोग खटकता है.....मगर इसके बावजूद शेर का कहाँ और बुनावट खूबसूरत है.....!
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
है शब्दों की माला पिरोने की कोशिश
सुमन ये क्या जाने कि कैसा असर है
बहुत खूब.......!
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
मुहब्बत की राहों में गिरते,सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
सारी गजल पढ़ी, बार बार पढ़ी
एक एक शब्द लोहार के हथोड़े से तरह कूट कूट लिखें हैं
आपको नहीं आपकी गजल,गीत को चरण स्पर्श ही लिखूंगी
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
sundar rachna........sundar bhav.
aajkal aape blog par aana chod diya hai.......koi narazgi hai kya.
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
सुंदर गज़ल ..
' जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।'
- यह तो कुछ कुछ जीवन की निस्सारता की बात हुई.
वाह सुंदर रचना.
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
वाह बहुत खूब ....
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
Bahut khoob Suman jee, vishesh tor pe ye do laainein
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