Thursday, May 27, 2010

सिफर का सफ़र

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है

सितारों के आगे अलग भी है दुनिया
नज़र तो उठाओ उसी की कसर है

मुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है

है शब्दों की माला पिरोने की कोशिश
सुमन ये क्या जाने कि कैसा असर है

33 comments:

M VERMA said...

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
सटीक सुन्दर

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ! लाजवाब पंक्तियाँ !

मनोज कुमार said...

ये एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है , जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर गज़ल ..वाह!

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
..इस शेर ने बहुत कुछ कह दिया. आदमी की भाग-दौड़ कभी खत्म नहीं होती,..प्यास कभी नहीं बुझती,,,...नदी मिली, सागर भी माँगा..यही प्यास है.

यह शेर भी बेहद उम्दा है..

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
..बधाई.

विनोद कुमार पांडेय said...

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है

बेहतरीन ग़ज़ल..सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई

अमिताभ मीत said...

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।

वाह ! बहुत बढ़िया शेर हैं भाई !!

honesty project democracy said...

अच्छा असर है आपके इस कविता का, आभार /

समय चक्र said...

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

बहुत सुन्दर ...आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
बहुत सुन्दर !

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में जहर ही जहर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
बहुत अद्भुत
यही गीत की पंक्ति मुख से निकले के.सी डे जी गाई हुई
दुनियां रंग रंगीली बाबा

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेहतरीन ग़ज़ल..

kshama said...

Bahad asarkarak ! Zindagi ke saare utaar chadhav yahan sama gaye..

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा और विचारणीय ग़ज़ल !

Ra said...

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

लाजवाब ग़ज़ल ,,,बेहतरीन

निर्झर'नीर said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।

लाजवाब ..

राजकुमार सोनी said...

अच्छी गजल लिखने पर हमने दबा दिया बजर है।

राज भाटिय़ा said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
वाह वाह जी बहुत सुंदर गलज कही आप ने.
धन्यवाद

ramadwivedi said...

डा.रमा द्विवेदी....

बहुत उम्दा ग़ज़ल है....बधाई व शुभकामनाएं

ramadwivedi said...

डा.रमा द्विवेदी....

बहुत उम्दा ग़ज़ल है....बधाई व शुभकामनाएं

Urmi said...

मुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
वाह वाह क्या बात है! लाजवाब पंक्तियाँ! बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल! बधाई!

डॉ टी एस दराल said...

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

सही है भाई । आजकल ऐसा ही हो रहा है ।

दीपक 'मशाल' said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है

पहली पंक्ति पर ही कुर्बान हो गए..

पंकज मिश्रा said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
ये एेसी लाइनें हैं कि ध्यान अकृष्ठ कर रही हैं। इन्हीं लाइनों ने पूरी कविता पढऩे पर विवश कर दिया। क्या खूब।

http://udbhavna.blogspot.com/

चन्द्र कुमार सोनी said...

सत्य वचन जी, सत्य वचन.
बल्कि, मैं तो कहूंगा कटु-सत्य वचन.
बहुत बढ़िया, धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Arvind Mishra said...

सुन्दर !

Pawan Kumar said...

matla इतना खूबसूरत बन पड़ा है की कोई भी कमेन्ट करने लायक आपने नहीं छोड़ा........
नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
क्या बात है.......जिंदाबाद.....!

सितारों के आगे अलग भी है दुनिया
नज़र तो उठाओ उसी की कसर है
इस शेर के सामने सजदा करने का जी चाह रहा है.......!

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
क्या जीवन दर्शन बताया है......भाई वाह.....! मुकर्रर !

विवाद में नहीं जाना चाहूँगा मगर ग़ज़ल में हिंदी शब्दों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है....."शहर" शब्द का प्रयोग खटकता है.....मगर इसके बावजूद शेर का कहाँ और बुनावट खूबसूरत है.....!

रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है

है शब्दों की माला पिरोने की कोशिश
सुमन ये क्या जाने कि कैसा असर है

बहुत खूब.......!

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः
मुहब्बत की राहों में गिरते,सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
सारी गजल पढ़ी, बार बार पढ़ी

एक एक शब्द लोहार के हथोड़े से तरह कूट कूट लिखें हैं
आपको नहीं आपकी गजल,गीत को चरण स्पर्श ही लिखूंगी

vandana gupta said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है

sundar rachna........sundar bhav.

aajkal aape blog par aana chod diya hai.......koi narazgi hai kya.

अर्चना तिवारी said...

कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है

सुंदर गज़ल ..

hem pandey said...

' जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।'

- यह तो कुछ कुछ जीवन की निस्सारता की बात हुई.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह सुंदर रचना.

अंजना said...

जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
वाह बहुत खूब ....

Yogesh Sharma said...

नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
Bahut khoob Suman jee, vishesh tor pe ye do laainein

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