Monday, October 4, 2010

कितना मुश्किल काम

रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर।
कोशिश है मुस्कान में, दिखे न मन का चोर।।

बदल रहा इन्सान का, अपना मूल स्वभाव।
दुखियों को अब देखकर, उठे न कोमल भाव।।

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।

मुँह खोलो मिल जायेंगे, इक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।

प्रायः सूरत पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।

21 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।

मुँह खोलो मिल जायेंगे, एक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।

सच को कहती अच्छी रचना ...

Roshani said...

धन्यवाद् श्यामल जी, इस कविता की एक एक लाईन जिंदगी की सच्चाई को उजागर करती है. यह बहुत ही दुखद है कि अब रिश्तों में पहले वाली जैसी बात नहीं. अब कोई भी घटना ह्रदय परिवर्तन नहीं करता अब सब मशीन बन गए हैं किसी को किसी के लिए फुर्सत ही नहीं.......

Roshani said...

धन्यवाद् श्यामल जी, इस कविता की एक एक लाईन जिंदगी की सच्चाई को उजागर करती है. यह बहुत ही दुखद है कि अब रिश्तों में पहले वाली जैसी बात नहीं. अब कोई भी घटना ह्रदय परिवर्तन नहीं करता अब सब मशीन बन गए हैं किसी को किसी के लिए फुर्सत ही नहीं.......

प्रवीण पाण्डेय said...

हँसना और हँसाना कितना कठिन है।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

kshama said...

प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
Kya baat kahi hai! Waaqayi,mukhaute pahne log nazar aatehee rahte hain!

Divya Narmada said...

आत्मीय सुमन जी!
वन्दे मातरम..
दोहों का कथ्य उत्तम है किन्तु शायद जल्दबाजी में आप शिल्प की ओर सजग नहीं रह पाये.
छुपा ले मन का चोर =१२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
अपना मूल स्वभाव = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
मीठा सा एहसास = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
मुँह खोलो मिल जायेंगे = १४ मात्राएँ, १३ चाहिए.
एक से एक सुझाव = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
हँसता चेहरा खोजना = १४ मात्राएँ, १३ चाहिए.

चन्द्र कुमार सोनी said...

बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
आशीर्वाद

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।

कितना सच लिखा ,मिठास ही तो नहीं
फिर आपने लिखा

मुँह खोलो मिल जायेंगे, एक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।

क्या सुझाव करें हम तो अपनी दास्ताँ सुना रहें थे
लोग सुन नहीं हस रहें थे खींसे निपोर कर

Priyanka Soni said...

बहुत सुन्दर !

Sadhana Vaid said...

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।

बहुत बढ़िया सुमन जी ! बहुत सुन्दर रचना है ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत सार्थक और सच्ची बातें कह दीं आपने रचना के माध्यम से !
'सुधिनामा' और 'उन्मना' पर आपकी उपस्थिति प्रतीक्षित है ! सधन्यवाद !

vandana gupta said...

सच कह दिया।

Darshan Lal Baweja said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

वीना श्रीवास्तव said...

प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।

जिस कदर मकड़ जाल में जीवन उलझा है उसमें चेहरे पर हंसी कहां होगी...सुंदर अभिव्यक्ति

संजय भास्‍कर said...

बहुत बढ़िया सुमन जी ! बहुत सुन्दर रचना है ! हर शेर लाजवाब है

Kusum Thakur said...

प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।

बिलकुल सच आजकल हँसता चेहरा सच में बहुत मुश्किल से मिलाता है.

Anonymous said...

प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।

कहाँ से शब्द लाऊँ ,क्या लिखूं
दो पंकियों में सारा निचोड़ है

मंजिल का रास्ता दूर पर हैं बहुत पास
खुश वह भी नहीं है,हम भी बहुत उदास

Unknown said...

रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर


ek gazal hai kahte hai:-

tum itna jo muskura rhe ho,,
kya gam hai jisko chupa rhe ho...

aankho mai nami aur hasi lavo par
kya hal hai kya dikha rhe ho..

kya gam hai jisko chhupa rahe ho.....



bahut badhiya dil ko choo gyi dhanyabaad...

Unknown said...

रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर


ek gazal hai kahte hai:-

tum itna jo muskura rhe ho,,
kya gam hai jisko chupa rhe ho...

aankho mai nami aur hasi lavo par
kya hal hai kya dikha rhe ho..

kya gam hai jisko chhupa rahe ho.....



bahut badhiya dil ko choo gyi dhanyabaad...

Asha Joglekar said...

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलता कहाँ, मीठा सा एहसास।।
बहुत सुंदर सुमन जी, यथार्थ को कविता में ढाल दिया ।

Asha Joglekar said...

शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।

बहुत सुंदर, यथार्त को कविता में ढाल दिया ।

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