रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर।
कोशिश है मुस्कान में, दिखे न मन का चोर।।
बदल रहा इन्सान का, अपना मूल स्वभाव।
दुखियों को अब देखकर, उठे न कोमल भाव।।
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
मुँह खोलो मिल जायेंगे, इक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।
प्रायः सूरत पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
कोशिश है मुस्कान में, दिखे न मन का चोर।।
बदल रहा इन्सान का, अपना मूल स्वभाव।
दुखियों को अब देखकर, उठे न कोमल भाव।।
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
मुँह खोलो मिल जायेंगे, इक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।
प्रायः सूरत पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
21 comments:
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
मुँह खोलो मिल जायेंगे, एक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।
सच को कहती अच्छी रचना ...
धन्यवाद् श्यामल जी, इस कविता की एक एक लाईन जिंदगी की सच्चाई को उजागर करती है. यह बहुत ही दुखद है कि अब रिश्तों में पहले वाली जैसी बात नहीं. अब कोई भी घटना ह्रदय परिवर्तन नहीं करता अब सब मशीन बन गए हैं किसी को किसी के लिए फुर्सत ही नहीं.......
धन्यवाद् श्यामल जी, इस कविता की एक एक लाईन जिंदगी की सच्चाई को उजागर करती है. यह बहुत ही दुखद है कि अब रिश्तों में पहले वाली जैसी बात नहीं. अब कोई भी घटना ह्रदय परिवर्तन नहीं करता अब सब मशीन बन गए हैं किसी को किसी के लिए फुर्सत ही नहीं.......
हँसना और हँसाना कितना कठिन है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
Kya baat kahi hai! Waaqayi,mukhaute pahne log nazar aatehee rahte hain!
आत्मीय सुमन जी!
वन्दे मातरम..
दोहों का कथ्य उत्तम है किन्तु शायद जल्दबाजी में आप शिल्प की ओर सजग नहीं रह पाये.
छुपा ले मन का चोर =१२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
अपना मूल स्वभाव = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
मीठा सा एहसास = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
मुँह खोलो मिल जायेंगे = १४ मात्राएँ, १३ चाहिए.
एक से एक सुझाव = १२ मात्राएँ, ११ चाहिए.
हँसता चेहरा खोजना = १४ मात्राएँ, १३ चाहिए.
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
श्यामल जी
आशीर्वाद
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।
कितना सच लिखा ,मिठास ही तो नहीं
फिर आपने लिखा
मुँह खोलो मिल जायेंगे, एक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।
क्या सुझाव करें हम तो अपनी दास्ताँ सुना रहें थे
लोग सुन नहीं हस रहें थे खींसे निपोर कर
बहुत सुन्दर !
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
बहुत बढ़िया सुमन जी ! बहुत सुन्दर रचना है ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत सार्थक और सच्ची बातें कह दीं आपने रचना के माध्यम से !
'सुधिनामा' और 'उन्मना' पर आपकी उपस्थिति प्रतीक्षित है ! सधन्यवाद !
सच कह दिया।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।
जिस कदर मकड़ जाल में जीवन उलझा है उसमें चेहरे पर हंसी कहां होगी...सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया सुमन जी ! बहुत सुन्दर रचना है ! हर शेर लाजवाब है
प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
बिलकुल सच आजकल हँसता चेहरा सच में बहुत मुश्किल से मिलाता है.
प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
कहाँ से शब्द लाऊँ ,क्या लिखूं
दो पंकियों में सारा निचोड़ है
मंजिल का रास्ता दूर पर हैं बहुत पास
खुश वह भी नहीं है,हम भी बहुत उदास
रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर
ek gazal hai kahte hai:-
tum itna jo muskura rhe ho,,
kya gam hai jisko chupa rhe ho...
aankho mai nami aur hasi lavo par
kya hal hai kya dikha rhe ho..
kya gam hai jisko chhupa rahe ho.....
bahut badhiya dil ko choo gyi dhanyabaad...
रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर
ek gazal hai kahte hai:-
tum itna jo muskura rhe ho,,
kya gam hai jisko chupa rhe ho...
aankho mai nami aur hasi lavo par
kya hal hai kya dikha rhe ho..
kya gam hai jisko chhupa rahe ho.....
bahut badhiya dil ko choo gyi dhanyabaad...
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलता कहाँ, मीठा सा एहसास।।
बहुत सुंदर सुमन जी, यथार्थ को कविता में ढाल दिया ।
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
बहुत सुंदर, यथार्त को कविता में ढाल दिया ।
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