Tuesday, October 19, 2010

बात रोने की है और बजी तालियाँ

रोटी खाने को कम है बची थालियाँ
बात रोने की है और बजी तालियाँ

जिन्दगी में भरोसा अगर टूटता .
अच्छी बातें भी लगतीं तभी गालियाँ

फर्क ससुराल, शमशान में कुछ नहीं
खोजने पर जहाँ न मिली सालियाँ

थी हुकुमत की कोशिश नहर के लिए
पर हकीकत वहाँ पर बनीं नालियाँ

हाल बदलेंगे, जज्बात दिल में अगर
और सुमन से सजेंगी नयी डालियाँ

15 comments:

kshama said...

बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ

Waah! waah! Waah!
Waise to harek pankti daad maangatee hai!

सदा said...

सुन्‍दर शब्‍दों के साथ भावमय प्रस्‍तुति ।

Anonymous said...

रोटी खाने को कम है बची थालियाँ
बात रोने की है और बजी तालियाँ

पढ़ कर यही शब्द निकले
देखा था मेरी आँखों ने सुलग रही थी तालियों पर जवाला
एक और लिखा

बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ

घर के आँगन में फूल खिले डाली डाली
कभी तो आएगा इस बाग का माली







देखा था मेरी आँखों ने सुलग रही थी जवाला
जी रहे थे अक्ष देख कर
पानी में किसी ने पत्थर मारा तो मंजर ही बदल गया

M VERMA said...

फर्क ससुराल, शमशान में कुछ नहीं
खोजने से जहाँ न मिली सालियाँ

यकीनन ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी क्या कहने हैं इस ग़ज़ल के.

deepti sharma said...

बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ

bahut khub
achhi kavita

Kailash Sharma said...

थी हुकुमत की कोशिश नहर के लिए
सोचाता हूँ वहाँ क्यों बनी नालियाँ....

बहुत सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति...

महेन्‍द्र वर्मा said...

अच्छी ग़ज़ल है...बधाई।

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब जी धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना, तालियाँ।

पंकज मिश्रा said...

फर्क ससुराल, शमशान में कुछ नहीं
खोजने से जहाँ न मिली सालियाँ
ये तो कमाल की लाइन है सुमन जी। बहुत खूब बहुत खूब। आपकी कितनी सालियां है?

Anonymous said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः


रोटी खाने को कम है बची थालियाँ
बात रोने की है और बजी तालियाँ

बहुत मन को छूती पंक्ति लिखी
मन को छूती पंक्तियाँ
पुतुल सुमन ने मेरी बहुत सेवा की कैसे भूल जाऊं
यही जज्बात पर तो जीती हूँ

शेइला said...

जिन्दगी में भरोसा न टूटे कभी

बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
यही शब्द
दो दिन के लिए मेहमान यहाँ
मालूम नहीं मंजिल है कहाँ
इक फूल जला इक खिला
कैसे करूं किस्मत से गीला

चन्द्र कुमार सोनी said...

खूबसूरत रचना के लिए बधाई.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Anupama Tripathi said...

हाल बदलेंगे, जज्बात दिल में अगर
और सुमन से सजेंगी नयी डालियाँ

बहुत सुंदर लिखा है ...
शुभकामनायें ...

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