तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढ़ूढ़ता हूँ
दीदार हो न पाया, क्यूँ निशान ढ़ूढ़ता हूँ
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर, इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ
खोया है इश्क में जो, आगे भी और खोना
खुद को मिटाने वाला, नादान ढ़ूढ़ता हूँ
एहसास उनका सच्चा गिर के भी सम्भल जाते
अनुभूति ऐसी अपनी, पहचान ढ़ूढ़ता हूँ
कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में, मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ
दीदार हो न पाया, क्यूँ निशान ढ़ूढ़ता हूँ
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर, इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ
खोया है इश्क में जो, आगे भी और खोना
खुद को मिटाने वाला, नादान ढ़ूढ़ता हूँ
एहसास उनका सच्चा गिर के भी सम्भल जाते
अनुभूति ऐसी अपनी, पहचान ढ़ूढ़ता हूँ
कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में, मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ
16 comments:
तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढ़ूढ़ता हूँ
दीदार हो सका न क्यूँ निशान ढ़ूढ़ता हूँ
वाह क्या खूबसूरती से विरह का वर्णन
मै दिल हूँ इक अरमान भरा
आकर मुझे पहचान जरा
मैंने भी किया था प्यार कभी
आयी है मुझे यही झंकार अभी
अब में गजल गीत पढ़ते हूँ उनके
यह बात चलेगी बहुत दूर तक अभी
खूबसूरत गजल ...
कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ
Muskaan hee muskaan mile aisee dua kartee hun!
कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ
Muskaan hee muskaan ho aisee dua kartee hun!
सुन्दर रचना !
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ
बहुत सुन्दर जज्बात है !
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क्यूँ झगडा होता है ?
खोया है इश्क में सब आगे है और खोना
खुद मिटाने वाला नादान ढ़ूढ़ता हूँ
ओह...क्या लाजवाब शेर कहें हैं आपने...सभी एक से बढ़कर एक...
सदैव की भांति अद्वितीय कृति !!!
sundar rachna!
जिस मुस्कान की हम सबको तलाश है, उसे आप लेकर आ गये हमारे लिये।
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ
बहुत खूब सुभानअल्लाह
हम इतिहास नहीं रच पाए प्यार में
हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया
आपकी गजल से रोशनी मिली जीने की
सुन्दर अभिव्यक्ति...
एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढ़ूढ़ता हूँ
जनाब बहुत प्रेम पुजारी की कथा है ये
तुमसे दूर जाऊ मैं ऐसा मेरा इरादा न था
और साथ रहू ऐसा ही कोई वादा भी था
nice and beautiful lines.
thanks.
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bahut khoob Suman sahab..
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ
(अति सुंदर )
सुन्दर
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