मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ।।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खैरात में।
जो फकीरी में लुटाते झब यहाँ फिर कल वहाँ।।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ।।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खैरात में।
जो फकीरी में लुटाते झब यहाँ फिर कल वहाँ।।
23 comments:
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
बहुत दर्द भरा
नीले गगन के तले जहाँ धरती का प्यार पले
दो रोज की खुशबू जीवन के संग चले
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
जिन्दा हूँ बेकरार दिल पर जिंदगी नहीं
सांस लेने की बन्दगी पाल रक्खी है
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
क्या लिखूं किस शब्द या पंक्ति को ना पढूं
ना दूनियाँ का ना रिवाजों का डर
कश्ती से नहीं उतरेंगे नाव भले ही हो भवर में
दूरी की मजबूरी का जख्न्म भरना है डगर में
एहसास के रंगों में नहलाने का शुक्रिया।
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दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
Kya baat kahee hai...wah!
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खैरात में।
जो फकीरी में लुटाते झब यहाँ फिर कल वहाँ।।
वाह जी वाह
तेरे ही आने की आस रहती हैं
सांस आती है जाती है
जिंदगी यूं ही निकल जाती है
इसलिए जिंदगी उदास रहती
कैसे आयूं जमना के तीर
बांधी है पाँव में जंजीर
एक एक शेर ...नायाब ग़ज़ल वाह !!!
आनंद आ गया भैया....
बहुत बहुत आभार !!!
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
.....बहुत सुन्दर प्रेरणामयी प्रस्तुति
बहुत खूब !!
दुश्मनी के डर में न जाने कितने सत्य दबे पड़े हैं विश्व में।
बहुत सुंदर गजल जी, धन्यवाद
शयामल जी
चिरंजीव भवः
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
बहुत ही सुंदर मन मन छू गई
soch raha tha kis sher ko sabse behtar kahun lekin sab bekar ..har sher padhte vaqt doosre se sundar or khas lagaa isliye is khoobsurat purmanii gazal par daad hazir hai kubool karen
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
bahut khoob!
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ।।
एक ही विनती
भगवान दो घड़ी जरा इंसान बन के देख
धरती पे चार दिन मेहमान बन के देख
तुम्हें जब मिले कभी फ़ुर्सत मेरे दिल से बोझ उतार दो,
मै बहुत दिनों से उदास हूं मुझे भी कोई शाम उधार दो....!
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
बुझे दीये पर किसी ने शमा जलाते देखा
बहुत बेहर्तरीन गजल है। बधाई स्वीकारें।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
ना रो ऐ दिल कहीं रोने से तकदीरें बदलती हैं'
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
झुक गया हमारा सर जब तुम्हारा नाम आया
बहुत बेहतरीन!बधाई स्वीकारें।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
अपना ही घर जल गया उनकी आह से
अश्कों से कैसे बुझायूं पड़ोसी का घर
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
उनकी ही आह से अपना घर जल गया
दो रोज में प्यार का आलम गुजर गया
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