प्रेमी को मिलने नहीं देती, अजब है जग की रीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
वह घटना होती अद्भुत-सी, प्यार जिसे कहते हैं।
सच्चा प्यार हुआ हो उसके, साथ कहाँ रहते हैं?
जीवन तो बस इक समझौता, हार कहूँ या जीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
जाति-धरम की दीवारों संग, और कई उलझन है।
संग जिसके दिन-रात है जीना, उससे क्यों अनबन है।
नैन मिले प्रियतम से वह पल, बन जाये संगीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
सच प्रायः सबको जीवन में, रहता शेष मलाल।
परम्परा के व्यूह में फँसकर, होते लोग हलाल।
कहते हो रक्षक है काँटा, नहीं सुमन का मीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
Saturday, January 15, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ-
14 comments:
बड़ा मौलिक प्रश्न है।
वाह सुंदर अभिव्यक्ति है जी आपकी.
सच प्रायः सबको जीवन में, रहता शेष मलाल।
परम्परा के व्यूह में फँसकर, होते लोग हलाल।
बहुत सही कहा है..खुशनसीब होते हैं लोग जिनको अपना प्यार मिलता है. बहुत सुन्दर
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सही कहा जी, अति सुंदर रचना, धन्यवाद
यह समझने का प्रयास होता रहे, प्रश्न बना रहे तो जवाब की जरूरत नहीं होगी.
कहते हो रक्षक है काँटा, नहीं सुमन का मीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
मन की उहापोह दर्शाती हुई सुंदर प्रस्तुति -
शुभकामनायें
बहुत सच्चे और अच्छे भाव..... इसी सवाल का जवाब तो नहीं मिल पाता......
ajee parampara ko chulhe men daliye...prit se badi parampara thode hi hai...sachcha prem paramparao ki chaudi sadak ke kinare ki patli gali se chupke se apna rasta bana kar nikal jaata hai...pryatn karne ki jarurat hai...kaise na hogi preet :)
bahot hi sundar rachna...
aapko badhai.
सच प्रायः सबको जीवन में, रहता शेष मलाल।
परम्परा के व्यूह में फँसकर, होते लोग हलाल।
सुंदर रचना,सुंदर अभिव्यक्ति धन्यवाद
वह घटना होती अद्भुत-सी, प्यार जिसे कहते हैं।
सच्चा प्यार हुआ हो उसके, साथ कहाँ रहते हैं?
शब्द ढूँढ रही हूँ धन्यवाद के
फूलोंवाली डाली के माली
तेरी खुशबू ही खुशबूदार खुशबूओं के साथ रहते हैं
यही है सच्चा प्यार जिसे प्यार कहते हैं
इसे तो आपके सुमधुर स्वर में सुनना है...
अवसर देने में विलम्ब न करें भाई जी..
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
सच प्रायः सबको जीवन में, रहता शेष मलाल।
परम्परा के व्यूह में फँसकर, होते लोग हलाल।
बहुत ही सुंदर व्यक्त
जीवन की कहानी
प्रेमी को मिलने नहीं देती, अजब है जग की रीत।
सजन से कैसे होगी प्रीत?
आपकी कविता में एक वेदना हैं सारी कविता बारम्बार पढ़ी यही निष्कर्ष
आँसू में ना ढूँढना हमें,
हम तुम्हे आँखों में मिल जायेंगे,
Post a Comment