आँखों में सूरत हरदम है
तेरे भीतर कितना गम है
देखा दुख जब घर के बाहर
आँख हुई क्यों तेरी नम है
तौल ज़रा औरों के गम से
तेरा गम कितनों से कम है
जितना तेज चमकता सूरज
दुनिया में उतना ही तम है
चाहत मुझको नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है
कब मिल कर के चोट करोगे?
जब कि लोहा अभी गरम है
सुमन भले बदलो, मत तोड़ो
निर्णायक बल में संयम है
Friday, February 11, 2011
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रचना में विस्तार
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
12 comments:
सूरत पे आँखें हरदम है
तेरे भीतर कितना गम है
निकलो घर से, बाहर देखो
प्रायः सबकी आँखें नम है
क्या लिक्खूँ
घर से निकले थे खुशी की तलाश में
गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए
bahut sunder
aabhar
...
जितना तेज चमकता सूरज
दुनिया में उतना ही तम है
आपका कहना सही है ..दुनिया में इतना अंधकार है जिसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता ...और यह भीतरी अंधकार व्यक्ति को हमेशा भ्रमित करता रहता है ...बहुत सार्थक भाव ...आपका आभार
चाहत मुझको नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है
आपकी अभिव्यक्ति में वही शबनमी कोमलता और शीतलता है।
कोमल भावों से सजी ..
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ओह....क्या बात कही है...
लाजवाब...लाजवाब ...लाजवाब....
अद्वितीय रचना...सदैव की भांति ...
तौल ज़रा औरों के गम से
तेरा गम कितनों से कम है
वाह क्या खूब सुंदर शब्दों में
भीगी आँखों में मुस्कराते ही है
गम छुपा कर अश्क पीते हम हैं
श्यामल जी
चिरंजीव भाव
जितना तेज चमकता सूरज
दुनिया में उतना ही तम है
बहुत सुंदर क्या लिक्खूँ
लिखने की कलम चलती रहे
धन्यवाद के साथ
आपकी गुड्डो दादी चिकागो से
चाहत मुझको नहीं मलय की
मेरा जीवन तो शबनम है
Bahut hee sundar!
वेलाटाइन के अवसर पर बहुत सुंदर कविता
प्यार की गहराईयाँ में बंधी प्रेमी के मिलन की प्रतीक्षा
भोर कभी न होती रे
प्रीत की बदली होती रे
क्या बात है
क्या बात है
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