आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर वो सूनामी अब जापान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।
दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से आजतलक तो रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।
साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।
प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
Friday, March 11, 2011
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16 comments:
यही ध्रुव सत्य है,मौत हमेशा हारती है और जि्न्दगी चलती रहती है। जीजीविषा केवलम्।
जापान के भाई/बहनों को ईश्वर त्रासदी को झेलने की शक्ति प्रदान करे।
कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
यही सत्य है।
बात आपने बिलकुल सही कहा...जीवन जित जाती है...और मौत का हारना एक सत्य है
इस त्रासद समय में धैर्य बंधाती प्रेरणा देती अतिसुन्दर रचना...
प्रकृति ने इस घटना द्वारा संकेत दिया है कि मनुष्य कितनी भी तरक्की क्यों का कर जाए,प्रकृति से बड़ा नहीं हो सकता...
पूर्ण विश्वास है, जिन्दगी रुकेगी नहीं।
आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
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आशा का संचार करती सुन्दर रचना!
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
सहमत हे जी आप की रचना से, बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद
aapne sahi kaha jindgi nhi rukegi
bas sath agar hosla ho.
बिल्कुल सही...अभी कहीं आपकी आवाज में भी सुना.
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आपकी कविता में आशा और निराशा की दोनों भाषा है
मौत भी थक के हारी
महकेगी फिर से फुलवारी
agar bhagwan hai to jarur japan ke trasdi ko kam karega.........:(
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।
हमेशा की तरह एकोर खूबसूरत कविता
सत्य
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना|धन्यवाद|
sach ko ujagar karta geet ...
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आशा का संचार करती सुन्दर रचना.........
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