Friday, March 11, 2011

मौत हारी है हमेशा

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर वो सूनामी अब जापान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।

दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।

लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से आजतलक तो रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।

प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

16 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

यही ध्रुव सत्य है,मौत हमेशा हारती है और जि्न्दगी चलती रहती है। जीजीविषा केवलम्।

जापान के भाई/बहनों को ईश्वर त्रासदी को झेलने की शक्ति प्रदान करे।

vandana gupta said...

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।


यही सत्य है।

Arshad Ali said...

बात आपने बिलकुल सही कहा...जीवन जित जाती है...और मौत का हारना एक सत्य है

रंजना said...

इस त्रासद समय में धैर्य बंधाती प्रेरणा देती अतिसुन्दर रचना...

प्रकृति ने इस घटना द्वारा संकेत दिया है कि मनुष्य कितनी भी तरक्की क्यों का कर जाए,प्रकृति से बड़ा नहीं हो सकता...

प्रवीण पाण्डेय said...

पूर्ण विश्वास है, जिन्दगी रुकेगी नहीं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
--
आशा का संचार करती सुन्दर रचना!

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

राज भाटिय़ा said...

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
सहमत हे जी आप की रचना से, बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

deepti sharma said...

aapne sahi kaha jindgi nhi rukegi
bas sath agar hosla ho.

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही...अभी कहीं आपकी आवाज में भी सुना.

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः
आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

आपकी कविता में आशा और निराशा की दोनों भाषा है

मौत भी थक के हारी
महकेगी फिर से फुलवारी

मुकेश कुमार सिन्हा said...

agar bhagwan hai to jarur japan ke trasdi ko kam karega.........:(

निर्झर'नीर said...

स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

हमेशा की तरह एकोर खूबसूरत कविता

सत्य

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना|धन्यवाद|

शारदा अरोरा said...

sach ko ujagar karta geet ...

पी.एस .भाकुनी said...

मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आशा का संचार करती सुन्दर रचना.........

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