Tuesday, April 19, 2011

जान लिया जो प्रेम को

जान लिया जो  प्रेम को, रहते अक्सर मौन।
प्रियतम जहाँ करीब हो, भला रहे चुप कौन।।

अलग प्रेम से कुछ नहीं, जगत प्रेममय जान।
जहाँ मिलन का वक्त हो, स्वतः खिले मुस्कान।।

जो बुनते सपने सदा, नियति-प्रेम है खास।
जब सपना अपना बने, जगे सुखद विश्वास।।

नैसर्गिक जो प्रेम है, करते सभी बखान।
इहलौकिकता प्रेम का, उसका भी सम्मान।।

सदा सृजन ही जान है, प्रियतम खातिर खास।
आपस में चाहत मिले, बहुत सुखद अहसास।।

निश्छल मन होते जहाँ, प्रायःसुन्दर रूप।
जगे हृदय यह भावना, कभी लगे ना धूप।।

आस मिलन की सँग ले, प्रियतम हो जब पास।
खास हृदय में चाह तब, पूरन हो सब आस।।

व्यक्त तुम्हारे रूप को सुमन किया स्वीकार।
अगर तुम्हें स्वीकार तो हृदय से है आभार।।

9 comments:

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय श्यामल सुमन जी
नमस्कार !
सुमन प्रेम को जानकर बहुत दिनों से मौन।
प्रियतम जहाँ करीब हो भला रहे चुप कौन।।

.....बहुत खूब लिखा है
बहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति...

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

रजनीश तिवारी said...

bahut sundar rachna . shubhkamnayen.

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut sunder manbhavan rachna.

राधा said...

सुमन प्रेम को जानकर बहुत दिनों से मौन।
प्रियतम जहाँ करीब हो भला रहे चुप कौन।।

बहुत सुंदर
दुखिया जिया पुकारे

Anonymous said...

सृजन सुमन की जान है प्रियतम खातिर खास।
दोनो की चाहत मिले बढ़े हृदय विश्वास।।




सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
भ्रमर सुमन के पास तो होगा मिलन जरूर।।

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत सुंदर

गुड्डोदादी said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति
भावनाओं से भर पूर भावनापूर्ण भावात्मक

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

aadarniya shyamal suman ji,
kafi dino baad aaj aapke blog ka link paya use follow kar liya link yaad nahi rahne k karan nahi aa saki ........
aapki rachnayen maine pahle bhi padhe hain bahut sarthk hote hain rachnayen aapke.............aabhar

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!