मेरे गीत का उत्स, मेरी कहानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
अपने थे रिश्तों में, अब हैं बेगाने।
याद करूँ वक्त पे, तो करते बहाने।
जितने भी बेबस को, अबतक सम्भाला,
अक्सर वही, आज दिखते सयाने।।
आँखों में उनके ना, दिखता है पानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
हालात बदले, तो परदेश आया।
प्यार दिया अपनों सा, जो था पराया।
खून के ना रिश्ते, पर ये है सच्चाई,
हरदम जरूरत पे, हाथ भी बढ़ाया।
प्रायः कई रिश्ते, लगते बेमानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
जीवन है अनुभव का, अनुपम पिटारा।
स्वार्थ से गले मिलते, स्वार्थ से अखाड़ा।
किसको सुमन फिर से, अपना कहेंगे?
जिसको सँवारा है, उसी ने बिगाड़ा।।
ज्ञान नहीं हंस जैसा, लाजिम नादानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
अपने थे रिश्तों में, अब हैं बेगाने।
याद करूँ वक्त पे, तो करते बहाने।
जितने भी बेबस को, अबतक सम्भाला,
अक्सर वही, आज दिखते सयाने।।
आँखों में उनके ना, दिखता है पानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
हालात बदले, तो परदेश आया।
प्यार दिया अपनों सा, जो था पराया।
खून के ना रिश्ते, पर ये है सच्चाई,
हरदम जरूरत पे, हाथ भी बढ़ाया।
प्रायः कई रिश्ते, लगते बेमानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
जीवन है अनुभव का, अनुपम पिटारा।
स्वार्थ से गले मिलते, स्वार्थ से अखाड़ा।
किसको सुमन फिर से, अपना कहेंगे?
जिसको सँवारा है, उसी ने बिगाड़ा।।
ज्ञान नहीं हंस जैसा, लाजिम नादानी।
प्यार से अधिक यहाँ, जख्म की निशानी।।
11 comments:
jab bhi likhte ho........gazab karte ho sdhyamal ji...
waah waah
badhaai !
हालात बदले तो परदेश आया।
प्यार दिया अपनों सा जो था पराया।
रिश्ते ना खून के थे लेकिन बताऊँ,
हरदम जरूरत पे हाथ भी बढ़ाया।
लगते कई रिश्ते प्रायः बेमानी।
प्यार से अधिक जहाँ जख्म की निशानी।।
Bahut,bahut sundar! Harek shabd,harek pankti!
प्यार से अधिक जख्म मिले हैं। वाह।
आँखों में उनके ना दिखता है पानी।
प्यार से अधिक जहाँ जख्म की निशानी।।
दर्द भरा दिल भर भर आये
प्यार का दामन छूट ना जाये
श्यामल जी
आशीर्वाद
आँखों में उनके ना दिखता है पानी।
प्यार से अधिक जहाँ जख्म की निशानी।।
आपकी कविता पढ़ एक गीत की पंक्ती याद आ गई
गरीब जान के हमको ना भुला देना
तुम्ही ने दर्द दिया तुम ही दवा देना
Bahut gahri rachna. . . . . , . . Dhanywaad. . . . . . . , jai hind jai bharat
मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति...
यही तो जग की रीत है..
हालात बदले तो परदेश आया।
प्यार दिया अपनों सा जो था पराया।
रिश्ते ना खून के थे लेकिन बताऊँ,
हरदम जरूरत पे हाथ भी बढ़ाया।
लगते कई रिश्ते प्रायः बेमानी।
प्यार से अधिक जहाँ जख्म की निशानी।।
aisa hi hota hai ....!
bahut pyari rachna....
इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
दर्द भरी रचना
सपना सपना जोड़ कर घर को माथा नवाया
मुड कर देखा तो स्वार्थ का अखाड़ा नज़र आया
अपने थे रिश्तों में अब हैं बेगाने।
याद करूँ वक्त पे तो करते बहाने।
किसको कहूँ किसके आगे रोयूं अपनी रुसवाई
आँखों में आंसूं हैं ना नींद अपनी है ना पराई
समुद्र की गहराई से अधिक जख्मों की गहराई है
कौन जाने पीर पराई मै हूँ मेरी तन्हाई है
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