Monday, May 9, 2011

आराधना ये कैसी?

सब  जानते  प्रभु  तो, फिर  प्रार्थना  ये  कैसी?
किस्मत की बात सच तो, नित साधना ये कैसी?

जितनी  भी  प्रार्थनाएं, इक माँग - पत्र सचमुच
यदि  फर्ज  को  निभाते, फिर  वन्दना  ये कैसी?

हम  हैं  तभी  तो  तुम  हो, रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते  हैं  क्यों  चढ़ावे, नित  कामना  ये  कैसी?

होती  जहाँ   पे  पूजा,  हैं   मैकदे  भी   रौशन
दोनों  में  इक  सही  तो, अवमानना  ये कैसी?

मरते  हैं  भूखे  कितने, कोई खा के मर रहा है
सब  कुछ  तुम्हारे  वश  में, सम्वेदना ये कैसी?

बाजार  और   प्रभु  का,  दरबार   एक  जैसा
सब  खेल  मुनाफे  का,  आराधना  ये  कैसी?

जहाँ  प्रेम  हो  परस्पर, क्यों डर के करें पूजा
संवाद   सुमन   उनसे,  सम्भावना  ये  कैसी?

10 comments:

Rachana said...

जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
uttam sher puri gazal sunder hai

राजेंद्र अवस्थी (कांड) said...

बहुत बढ़िया,

जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसा
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?

मजा आ गया...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता.

SAJAN.AAWARA said...

BAHUT HI ACHI KAVITA. SUNDAR, . , . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

SAJAN.AAWARA said...

BAHUT HI ACHI KAVITA. SUNDAR, . , . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

Urmi said...

हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?
मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है
सब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?
वाह! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और शानदार ग़ज़ल! बधाई!

रंजना said...

सटीक सार्थक प्रश्न उठाये हैं आपने...विरोधाभाषों को बड़ी प्रखरता से रेखांकित किया है....

मन को आंदोलित करती बहुत ही सुन्दर रचना...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
...वाह!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर......

Pallavi saxena said...

सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?
किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?

जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र सचमुच
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?

bahut badhiya sir,.....absolutly correct hai sab

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