सब जानते प्रभु तो, फिर प्रार्थना ये कैसी?
किस्मत की बात सच तो, नित साधना ये कैसी?
जितनी भी प्रार्थनाएं, इक माँग - पत्र सचमुच
यदि फर्ज को निभाते, फिर वन्दना ये कैसी?
हम हैं तभी तो तुम हो, रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते हैं क्यों चढ़ावे, नित कामना ये कैसी?
होती जहाँ पे पूजा, हैं मैकदे भी रौशन
दोनों में इक सही तो, अवमानना ये कैसी?
मरते हैं भूखे कितने, कोई खा के मर रहा है
सब कुछ तुम्हारे वश में, सम्वेदना ये कैसी?
बाजार और प्रभु का, दरबार एक जैसा
सब खेल मुनाफे का, आराधना ये कैसी?
जहाँ प्रेम हो परस्पर, क्यों डर के करें पूजा
संवाद सुमन उनसे, सम्भावना ये कैसी?
Monday, May 9, 2011
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10 comments:
जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
uttam sher puri gazal sunder hai
बहुत बढ़िया,
जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसा
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?
मजा आ गया...
बहुत सुंदर कविता.
BAHUT HI ACHI KAVITA. SUNDAR, . , . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
BAHUT HI ACHI KAVITA. SUNDAR, . , . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?
मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है
सब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?
वाह! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और शानदार ग़ज़ल! बधाई!
सटीक सार्थक प्रश्न उठाये हैं आपने...विरोधाभाषों को बड़ी प्रखरता से रेखांकित किया है....
मन को आंदोलित करती बहुत ही सुन्दर रचना...
जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
...वाह!
बहुत सुन्दर......
सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?
किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?
जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र सचमुच
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?
bahut badhiya sir,.....absolutly correct hai sab
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