Thursday, June 9, 2011

निहारे नयन सुमन अविराम

झील सी गहरी लख आँखों में, नील-सलिल अभिराम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।

कुछ समझा कुछ समझ न पाया, बोल रही क्या आँखें?
जो न समझा कहो जुबाँ से, खुलेगी मन की पाँखें।
लिपट लता-सी प्राण-प्रिये तुम, भूल सभी परिणाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।

दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।
सुख कैसा और दुःख है कैसा, नित चुनते आयाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।

भरी दुपहरी में शीतलता, सखा मिलन से चैन।
सिल जाते हैं होंठ यकायक और बोलते नैन।
कठिन रोकना प्रेम-पथिक को, प्रियतम हाथ लगाम
निहारे नयन सुमन अविराम।।

10 comments:

BrijmohanShrivastava said...

जितनी दफे पढो उतनी ही दफे आनंदित करने वाली कविता ।

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ समझा कुछ समझ न पाया, बोल रही क्या आँखें?
जो न समझा कहो जुबाँ से, खुलेगी मन की पाँखें।

क्या बात है सुमन आज तो मन की पांखें बहुत कुछ बोल रही हैं ......:))

कौन है वो ....?
जो जुबां नहीं खोलती .....:))

Kusum Thakur said...

निहारे नयन सुमन अविराम।

क्या बात है ........

प्रवीण पाण्डेय said...

अहा, सौन्दर्य फुहार से बिखरे शब्द।

रजनीश तिवारी said...

दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।
सुख कैसा और दुःख है कैसा, नित चुनते आयाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
बिना दुख के सुख नहीं ....
बहुत सुंदर कविता है ।

Anupama Tripathi said...

झील सी गहरी लख आँखों में, नील-सलिल अभिराम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।

सुंदर भावाभिव्यक्ति

डॉ. मोनिका शर्मा said...

दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।

बेमिसाल पंक्तियाँ..... सुंदर

Urmi said...

दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।
सुख कैसा और दुःख है कैसा, नित चुनते आयाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और शानदार रचना!

ZEAL said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है श्यामल जी।

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!