Wednesday, June 22, 2011

बेबसी

अपना गीत - अपना स्वर

कृपया वीडियो को क्लिक करके सुने - नीचे इसी ग़ज़ल के बोल भी हैं



बेबसी

बात गीता की आकर सुनाते रहे
आईना से वो खुद को बचाते रहे

बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे

मिल्कियत रौशनी की उन्हें अब मिली
जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे

मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे

उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे

गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

रहे शान्त बगिया, जो कहता सुमन,
जो सबको अच्छा लगा, वो सुनाते रहे।

Pallavi saxena said...

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे bahut khub sir,...

Ruchika Sharma said...

जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे

बहुत खूब

हंसी के फवारे में- अजब प्रेम की गजब कहानी

Amit Chandra said...

खुबसुरत गजल। हर शेर की दाद है।

kshama said...

Ekek lafz khoobsoorat hai.

Maheshwari kaneri said...

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे....खुबसुरत गजल।

***Punam*** said...

"मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे"

"गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे"


"टूट कर शाख से यही गुंचे
दामन-ए-यार को महकाते रहे..."

क्या खूब शेर हैं....

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