Friday, July 8, 2011

मेरे प्यार का यही सिला है

ये सच कि मनमीत मिला है
दूरी फिर भी यही गिला है

कुछ न पाया देकर सब कुछ
मेरे प्यार का यही सिला है

रहता हरदम इन्तजार में
नहीं अभीतक धैर्य हिला है

काँटे क्यों हैं फूल बाग में
शायद काँटा कुसुम-किला है

दृढ़ता से विश्वास मिलन का
इसी आस में सुमन खिला है

8 comments:

Kusum Thakur said...

"कुछ न पाया देकर सब कुछ
मेरे प्यार का यही सिला है"

भाव पूर्ण रचना आपने मन के भावों को बहुत ही सहज सरल भाषा में लिख डाला है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काँटे क्यों हैं फूल बाग में
शायद काँटा कुसुम-किला है

सुन्दर भाव से सजी अच्छी गज़ल

विभूति" said...

बहुत ही भावपूर रचना...

दर्शन कौर धनोय said...

कुछ न पाया देकर सब कुछ
मेरे प्यार का यही सिला है..
बहुत खूब ..इसी तरह बगियाँ ,मै सुमन खिलाते रहे ..

दिगम्बर नासवा said...

रहता हरदम इन्तजार में
नहीं अभीतक धैर्य हिला है ...

बहुत लाजवाब ... कार सभी में इतना धैर्य आ जाए की हिले नहीं ...

अनामिका की सदायें ...... said...

saral sahaz rachna.

प्रवीण पाण्डेय said...

आस में आप यूँ ही खिलते रहें।

नन्हों said...

शिकवा रात का -क्यों चुराए सितारे सवेरा हँसा

सवेरा थोड़ी देर रुक जा अरमानो को पूरा होने दे

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