मिलन की चाहत जहाँ जोर है
और विकलता उभय ओर है
ऊथल पुथल दिल के अन्दर तब
बाहर से भी अधिक शोर है
झिझक शेष क्यों रहे भला जब
नहीं किसी के हृदय चोर है
प्रियतम से हो मिलन जहाँ भी
समझ वहीं से नया भोर है
दिखे नैन में तड़प मिलन की
सुमन आँख में भरा नोर है
नोर - आँसू जिसे कहीं कहीं "लोर" भी कहा जाता है।
Monday, July 11, 2011
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
12 comments:
बहुत सुंदर रचना ..
बहुत सुंदर गज़ल श्यामल जी...
भावमयी अभिव्यक्ति
प्रियतम से हो मिलन जहाँ भी
समझ वहीं से नया भोर है
बहुत उम्दा शायरी हैं ....दिल की उथल -पुथल से सराबोर ..प्रेयसी से मिल्न की चाह ...
बहुत ही सुन्दर, सदा की तरह।
बहुत ही सुन्दर व भावमयी,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भावपूर्ण रचना
झिझक शेष क्यों रहे भला जब
नहीं किसी के हृदय चोर है
बहुत ही सुन्दर व भावमयी रचना ..,
छंद-बद्ध,प्रवाहमयी सुंदर कविता.वाह!!
नमस्ते अंकल,
क्या ये रचना मुझे ध्यान में रख कर लिखी है..
:)
एक सुझाव: "नया भोर" की जगह "नयी भोर" कैसा रहेगा?
लेकिन इस से "भरा नोर है" की लय बिगड़ जाएगी..
जो भी है... मेरे ह्रदय के भाव इसमें पूरे हैं..
आपकी रचनाओं में बच्चे, युवा, बड़े... सभी "समानुभूति" (Empathy) रख सकते है...
चरण स्पर्श
बहुत ही सुन्दर...वाह !!!!
बेहतरीन रचना
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